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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
के देवता विषयक अनेक मत उद्धृत किये हैं।' इन से प्रतीत होता है कि भारि ने कोई वेदसंबन्धी अनुक्रमणिका ग्रन्थ भी अवश्य लिखा
था ।
७. मनुस्मृतिभाव्य - भागुरि ने मनुस्मृति पर एक भाष्य लिखा था । मनु०८।१६८ में प्रयुक्त अनपसर शब्द का भागुरि प्रदर्शित अर्थ कल्पतरुकार लक्ष्मीधर ने उद्धृत किया है।
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८' राजनीतिशास्त्र - नीतिवाक्यामृत की टोका में भागुरि के राजनीतिपरक श्लोक उद्धृत हैं ।
व्याकरण, संहिता, ब्राह्मण, अलङ्कार, कोष, सांख्यभाष्य और १० अनुक्रमणिका आदि सब ग्रन्थों का प्रवक्ता एक ही भागुरि है वा भिन्न भिन्न, यह कहना तब तक कठिन है, जब तक इन ग्रन्थों की उपलब्धि न हो जावे |
७ – पौष्करसादि (३१०० वि० पू०)
पौष्करसादि आचार्य का नाम पाणिनीय सूत्रपाठ में उपलब्ध १५ नहीं होता । महाभाष्य ८।४।४८ के एक वार्तिक में इसका उल्लेख है । तैत्तिरीय और मैत्रायणीय प्रातिशाख्य में पौष्करसादि के अनेक मत उद्धृत हैं । काशकृत्स्न धातुपाठ की चन्नवोर कविकृत कन्नड टीका के आरम्भ में इन्द्र, चन्द्र, आपिशलि, गार्ग्य, गालव के साथ पौष्कर स्मृत है । यह नामैकदेश न्याय से पौष्करसादि ही है । इन २० से पौष्करसादि प्राचार्य का व्याकरणप्रवक्तृत्व विस्पष्ट है ।
परिचय
वंश - पौष्करसादि में श्रूयमाण तद्धित प्रत्यय के अनुसार इनके पिता
१. बृहद्देवता ३ | १०० ॥ ५॥४०॥६।९६,१०७॥
२. द्र०—शाश्वतवाणी समाजशास्त्र विशेषाङ्क (सन् १९६२) पृष्ठ ६१ पर । ३. चयो द्वितीया शरि पौष्करसादे: ।
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१. ४, तै० प्रा० ५।३७,३८|| १३ | १६|| १४|२|| १७|६|| मे० प्रा० ५५३६, ४०||२|१|१६।२।५।६ ॥
५. सद्भिः = इन्द्रचन्द्रापिशलिगार्ग्यगालवपौष्करैः ( यह कन्नड टीका का संस्कृत रूपान्तर है ) पृष्ठ १ ।