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पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखत प्राचीन प्राचार्य १०६ ४. कोष-अमरकोष आदि की टीकानों में भागुरिकृत कोष के अनेक उद्धरण उपलब्ध होते हैं।' सायण ने धातृवृत्ति में भागुरि के कोष का एक श्लोक उद्धत किया है। पुरुषोत्तमदेवकृत भाषावृत्ति, सृष्टिधरकृत भाषावृत्तिटीका और प्रभावृत्ति से विदित होता है कि भागुरिकृत कोष का नाम 'त्रिकाण्ड' था। अमरकोष की सर्वानन्द- ५ विरचित टीकासर्वस्व में त्रिकाण्ड के अनेक वचन उद्धृत हैं।
५. सांख्यदर्शनभाष्य-विक्रम की बीसवीं शताब्दी पूर्वार्ध के महाविद्वान स्वामी दयानन्द सरस्वतो ने सत्यार्थप्रकाश प्रथम संस्करण (सं० १९३२ वि०) में लिखा है-'उसके पीछे सांख्यदर्शन जो कि कपिल मुनि के किये सूत्र उन ऊपर भागुरि मुनि का किया भाष्य, १० इस को १ मास में पढ़ लेगा । संस्कारविधि के संशोधित अर्थात् द्वितीय संस्करण (सं० १९४१ वि०) में भी सांख्यदर्शन भागुरिकृत भाष्य सहित पढ़ने का विधान किया है।
६. देवता ग्रन्थ- गृहपति शौनक ने बृहद्देवता में भागुरि प्राचार्य
१. अमरटीकासर्वस्व, भाग १, पृष्ठ १११, १२५, १६३ इत्यादि । अमर १५ क्षीरटीका, पृष्ठ ५, ६, १२ इत्यादि । हैम अभिधानचिन्तामणि स्वोपज्ञटीका ।
२. तथा भागुरिरपि ह्रस्वान्तं मन्यते । यथाह च- भार्या भेकस्य वर्षाम्वी शृङ्गी स्यान्मद्गुरस्य च । शिली गण्डूपदस्यापि कच्छपस्य डुलिः स्मृता ॥ घाबुवृत्ति, भूधातु, पृष्ठ ३० ॥ यह श्लोक अमरटीकसर्वस्व भाग १, पृष्ठ १९३ में भी उदधृत है।
३. भाषावृत्ति-शिवताति: शंतातिः अरिष्टतातिः, अमी शब्दाश्छान्दसा अपि कदाचिद् भाषायां प्रयुज्यन्ते इति त्रिकाण्डे भागुरिनिबन्धनाद्वाऽव्युत्पन्न. संज्ञाशब्दत्वाद्वा सर्वथा भाषायां साधु ॥ ४।४।१४३ ॥
भाषावृत्तिटीका-त्रिकाण्डे कोशविशेषे भागुरेरेवाचार्यस्य यदेषां निबन्धनं तस्माच्च ।४।४।१४३ ॥ प्रभावृत्ति-एभिनेवभिः सूत्रनिष्पन्नाश्छान्दसा २५ मपि शब्दा भाषायां साघवो भवन्ति · त्रिकाण्डे भागुरिनिबन्धनात् । पं० गुरुपद हालदार कृत व्याकरण-दर्शनेर इतिहास पृष्ठ ४६६ में उद्धृत ।
४. पृष्ठ ७८, सन १८७५ का छपा । सत्यार्थप्रकाश में भी भागुरिकृत भाष्य का उल्लेख है । द्र०-रामलाल कपूर ट्रस्ट संस्क० पृष्ठ १०४ । .
५. संस्कारविधि, वेदारम्भसंस्कार । द्र०-रामलाल कपूर ट्रस्ट संस्करण है. (तृतीय) पृष्ठ १४४