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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ,
पूर्वकालिक हैं । अत: भागुरि का काल विक्रम से ४००० वर्ष पूर्व अवश्य होना चाहिए।
भागुरि का व्याकरण भागुरि के व्याकरणसंबन्धी जितने वचन या मत उद्धृत मिलते ५ हैं, उन से प्रतीत होता है कि भागुरि का व्याकरण भले प्रकार परि
ष्कृत था, और वह पाणिनीय व्याकरण से कुछ विस्तृत था । यदि जगदीश तर्कालङ्गार द्वारा उद्धृत श्लोक इसी रूप में भागुरि के हों तो सम्भव है भागुरि का व्याकरण श्लोकबद्ध हो।
भागुरि-व्याकरण के उद्धरण १० भागुरि आचार्यप्रोक्त व्याकरण के निम्न मत या वचन उपलब्ध होते हैं
भाषावृत्ति ४।१।१० में भागुरि का मत१. नप्तेति भागुरिः । अर्थात् भागुरि के मत में नप्ता का भी प्रयोग .? होता था । पाणिनीय मतानुसार 'नप्त्री' प्रयोग होता है। १५ जगदीश तर्कालङ्गार ने शब्दशक्तिप्रकाशिका में भागुरि के निम्न
मत वा वचन उद्धृत किये हैं । - २. मुण्डादेस्तत् करोत्यर्थे, गृह्णात्यर्थे कृतादितः ।
वक्तीत्यर्थे च सत्यादेर्, अङ्गादेस्तन्निरस्यति ।। इति भागुरिस्मृतेः।' ३. तूस्ताद्विघाते, संछादे वस्त्रात् पुच्छादितस्तथा। २० उत्प्रेक्षादौ, कर्मणों णिस्तदव्ययपूर्वतः ।। इति भागुरिस्मृतेः ।
४. वीणात उपगाने स्याद्, हस्तितोऽतिक्रमे तथा ।
... सेनातश्चाभियाने णिः, श्लोकादेरप्युपस्तुतौ ॥ इति भागुरिस्मृतेः ।' .., ५ गुपधूपविच्छिपणिपनेरायः, कमेस्तु णिङ् ।
ऋतेरियङ चतुर्लेषु नित्यं स्वार्थे, परत्र वा ॥ इति भागुरिस्मृतेः ।। २५ ६. गुपो वधेश्च निन्दायां, क्षमायां तथा तिजः ।
१. पृष्ठ ४४४, काशी संस्क०। ३. पृष्ठ ४४६ । , ,
२. पृष्ठ ४४५। काशी संस्क० । ४. पृष्ठ ४४७ । ।