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________________ १४ पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य १०५ परिचय भागुरि में श्रूयमाण तद्धितप्रत्यय के अनुसार भागुरि के पिता का नाम 'भगुर' प्रतीत होता है । महाभाष्य ७।३।४५ में किसी भागुरी का नामोल्लेख है । संभव है यह भागुरि की स्वसा हो । इस पण्डिता देवी ने किसी लोकायत शास्त्र की व्याख्या की थी।' यह लोकायत ५ शास्त्र अर्थशास्त्रवत् कोई अर्थप्रधान ग्रन्थ प्रतीत होता है।' ___ प्राचार्य-बृहत्संहिता ४७।२ पृष्ठ ५८१ के अनुसार भागुरि बृहद्गर्ग का शिष्य था। भागुरि का मेरु-परिमाण-विषयक मत वायु पुराण ३४६२ में उपलब्ध होता है । काल हम आगे प्रतिपादन करेंगे कि भागुरि प्राचार्य ने सामवेद की संहिता शाखा और ब्राह्मण का प्रवचन किया था। कृष्ण द्वैपायन तथा उनके शिष्य प्रशिष्यों द्वारा शाखाओं का प्रवचन भारतयुद्ध से पूर्व हो चका था। अतः भागरि का काल विक्रम से ३१०० वर्ष पूर्ववर्ती है। 'संक्षिप्तसार' के 'प्रयाज्ञवल्क्यादेाह्मणे' सूत्र (तद्धित ४५४) की १५ टीका में शाट्यायन ऐतरेय के साथ भागुर ब्राह्मण भी स्मृत है। तदनुसार पाणिनि के मत में भागुरि-प्रोक्त ब्राह्मण ऐतरेय के समान पूराणप्रोक्त सिद्ध होता है। पाणिनि द्वारा स्मत पूराणप्रोक्त ब्राह्मण कृष्ण द्वैपायन और उनके शिष्य-प्रशिष्यों द्वारा प्रोक्त ब्राह्मणों से १. वर्णिका भागुरी लोकायतस्य । वर्तिका भागुरी लोकायतस्य । कैयट के २० मत में भागुरी टीका ग्रन्थ का नाम है-वणिकेति व्याख्यात्रीत्यर्थः, भागुरी टीकाविशेषः। , २. वात्स्यायन के 'अर्थश्च राज्ञः, तन्मूलत्वाल्लोकयात्रायाः' (२०१५) तथा 'वरं सांशयिकान्निष्कादसांशयिकः कार्षापण इति लोकायतिका:' (११२।२८) इन दोनों सूत्रों को मिलाकर पढ़ने से प्रतीत होता है कि लोका. २५ यत शास्त्र भी अर्थशास्त्र के समान कोई अर्थप्रधान शास्त्र था हमारे मित्र श्री पं० ईश्वरचन्द्र जी ने 'लोकायतं न्यायशास्त्रं ब्रह्मगार्योक्तम्' (गणपति शास्त्री कृत अर्थशास्त्र टीका, भाग १, पृष्ठ २५ )पाठ की ओर ध्यान आकृष्ट किया था। अत: प्राचीन लोकायत शास्त्र नास्तिक नहीं था। ३. चतुरस्रं तु भागुरिः।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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