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पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचाय १०३ अर्थशास्त्र-कौटिल्य अर्थशास्त्र में भरद्वाज का एक वचन उद्धृत हैं।' उससे विदित होता है कि भरद्वाज ने अर्थशास्त्र की रचना की थी। इस अर्थशास्त्र के दो श्लोक यशस्तिलकचम्पू के पृष्ठ १०० पर उद्धृत हैं । इनमें से पहले का अर्धभाग कौटिल्य अर्थशास्त्र ७.५ में उपलब्ध होता है। भरद्वाज के पिता बृहस्पति का अर्थशास्त्र प्रसिद्ध ५
__यन्त्रसर्वस्व-महर्षि भरद्वाज ने 'यन्त्रसर्वस्व' नामक कला-कौशल का बृहद् ग्रन्थ लिखा था। उसका कुछ भाग बड़ोदा के राजकीय पुस्तकालय में सुरक्षित है। उसका विमान-विषय से सम्बद्ध उपलब्ध स्वल्पतम भाग श्री पं० प्रियरत्नजी आर्ष (स्वामी ब्रह्ममुनिजी) ने विमानशास्त्र के नाम से कई वर्ष पूर्व प्रकाशित किया था। अब आपने उसका पर्याप्त भाग उपलब्ध करके आर्यभाषानुवाद सहित प्रकाशित किया है । इस ग्रन्थ के अन्वेषण का श्रेय इन्हीं को है। इस विमानशास्त्र में विविध परिवह (=उच्च नीच स्तर) में विचरने वाले विमानों के लिये विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता १५
पुराण-वायु पुराण १०३।६३ में भरद्वाज को पुराण का प्रवक्ता कहा है । __धर्मशास्त्र-संस्कार-भास्कर पत्रा २ में हेमाद्रि में निर्दिष्ट भर. द्वाज का एक लम्बा उद्धरण उद्धृत है। इससे विदित होता है कि २० भरद्वाज ने किसी धर्मशास्त्र का भी प्रवचन किया था।
शिक्षा-भण्डारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट पूना से एक भारद्वाजशिक्षा प्रकाशित हुई है। उसके अन्तिम श्लोक' तथा टीकाकार वागेश्वर भट्ट के मतानुसार यह शिक्षा भरद्वाजप्रणीत है हमारे - १. इन्द्रस्य हि स प्रणमित यो बलीयसे नमतीति भरद्वाजः । अधि० १२, २५ अ० १॥ तुलना करो-इन्द्र मेव प्रणमते यद्राजानमिति श्रुतिः । महाभारत . . शान्ति० ६४।४।।
२. भारतवर्ष का बृहद् इतिहास, भाग १ पृष्ठ ११६, द्वि० सं० । । ३. यह भाग विमानशास्त्र' के नाम से प्रार्य सार्वदेशिक प्रतिनिधि सभा देहली से प्रकाशित हुआ है।
४. गौतमाय भरद्वाजः । ३० ५. यो जानाति भरद्वाजशिक्षामर्थसमन्विताम् । पृष्ठ ६६ । ६. .... प्रवक्ष्यामि इति भरद्वाजमुनिनोक्तम् । पृष्ठ १ ।