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संस्कृतव्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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में सहस्रवार्षिक कई रसायनों का उल्लेख है। जिन के प्रयोग से अनेक महर्षियों ने इतना सुदीर्घ आयुष्य प्राप्त किया था, जिस की कल्पना भी आज के अल्पायुष्य काल में असम्भव प्रतीत होती है।
व्याकरण का स्वरूप भरद्वाज का व्याकरण अनुपलब्ध है। उसका एक भी वचन वा मत हमें किसी प्राचीन ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं हुआ। कात्यायन ने यजुःप्रातिशाख्य में आख्यात=क्रिया को भरद्वाजदृष्ट कहा है।' उस से व्यक्त होता है कि भरद्वाज ने अपने व्याकरण में प्राख्यात पर
विशेषरूप से लिखा था। इस से अधिक हम इस विषय में कुछ नहीं १० जानते ।
अन्य कृतियां इस अनूचानतम और दीर्घजीवितम भरद्वाज ने अपने सुदीर्घ जीवन में किन-किन विषयों का प्रवचन किया, यह अज्ञात है ।
प्राचीन ग्रन्थों में इस भरद्वाज को निम्न विषयों का प्रवक्ता वा १५ शास्त्रकर्ता कहा है
आयुर्वेद-वायु पुराण ६२।२२ में लिखा है-भरद्वाज ने आयुर्वेद की संहिता रची थी। चरक सूत्र स्थान १।२६-२८ के अनुसार भर. द्वाज ने आत्रेय पुनर्वसु प्रभृति शिष्यों को एक कायचिकित्सा पढ़ाई
थी । भारद्वाजीय आयुर्वेद संहिता का एक उद्धरण अष्टाङ्ग-संग्रह २० सूत्रस्थान पृष्ठ २७० की इन्दु की टीका में मिलता है।
धनुर्वेद-महाभारत शान्ति पर्व २१०।२१ के अनुसार भरद्वाज ने धनुर्वेद का प्रवचन किया था।
राजशास्त्र-महाभारत शान्ति पर्व ५८।३ में लिखा है-भरद्वाज ने राजशास्त्र का प्रणयन किया था । २५ १. भरद्वाजकमाख्यातम् । अ० ८ पृष्ठ, ३२७ मद्रास संस्करण । उवट
भरद्वाजेन दृष्टमाख्यातम् । सम्पादक नै भ्रम से इस प्रकरण के अनेक सूत्र टीका में मिला दिये हैं।
२. पूर्व पृष्ठ ६६, टि० २ ॥ ३. भरद्वाजो धनुर्ग्रहम् ।
४. भरद्वाजस्य भगवांस्तथा गौरशिरा मुनिः । राजशास्त्रप्रणेतारो ब्राह्मणा ३० ब्रह्मवादिनः ॥