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पाणिनोयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचाय १०१ काशिपति प्रतर्दन दाशरथि राम का समकालिक था।' रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ५४ के अनुसार राम आदि वन जाते हुए भरद्वाज के आश्रम में ठहरे थे । सीता-स्वयंवर के अनन्तर दाशरथि राम का जामदग्न्य राम से साक्षात्कार हुआ था। महाभारत के अनुसार जामदग्न्य राम त्रेता और द्वापर की सन्धि में हया था। इन प्रमाणों ५ से स्पष्ट है कि दीर्घजीवी भरद्वाज मर्यादापुरुषोत्तम राम के समय विद्यमान था । दाशरथि राम का काल त्रेता के सन्ध्यंश या अन्तिम चरण है । अतः भरद्वाज का काल विक्रम से न्यूनातिन्यून ६३०० से ७५०० वर्ष पूर्व है । महाभारत में लिखा है कि भरद्वाज ने महाराज भरत की सुनन्दा रानी में नियोग से सन्तान उत्पन्न किया था ।
१० ___ शौनक-प्रति-संस्कृत ऐतरेय ब्राह्मण १५३५ में प्रयुक्त 'पास' क्रिया से व्यक्त होता है कि ऐतरेय ब्राह्मण के शौनक के परिष्कार से बहुत पूर्व भरद्वाज की मृत्यु हो चुकी थी। भारत युद्ध के समय द्रोण ४०० वष का था। उस से न्यूनातिन्यून २०० वर्ष पूर्व द्र पद उत्पन्न हुआ था। महाभारत में द्रुपद को राज्ञां वृद्धतमः कहा है । भरद्वाज के १५ सखा महाराज पृषत् के स्वर्गवास के पश्चात् द्रुपद राजगद्दी पर बैठा । इसी समय भरद्वाज स्वर्गामि हुना। इस घटना से यही प्रतीत होता है कि भरद्वाज भारत युद्ध से लगभग ४०० वर्ष पूर्व तक जीवित रहा। भरद्वाज भारतीय इतिहास में वर्णित उन कतिपय दीर्घजीवितम ऋषियों में से एक है, जिनकी आयु लगभग सहस्र वर्ष से भी २० अधिक थी। चरक चिकित्सास्थान अध्याय १ में लिखा है कि भरद्वाज ने रसायन द्वारा दोर्घायुष्ट्व प्राप्त किया था। चरक के इसी प्रकरण
१. तं विसृज्य ततो रामो वयस्यमकुतोभयम् । प्रतर्दनं काशिपति परिष्वज्येदमब्रवीत ॥
२. त्रेताद्वापरयोः सन्धौ रामः शस्त्रभृतांवरः । असकृत् पार्थिवं क्षत्रं २५ जघानामर्षचोदितः ॥ आदि० २।३।।
३. आदि पर्व, द्वितीय वंशावली। ४. पूर्व पृष्ठ पर, १०० टि० ३ । ५. भरद्वाजस्य सखा पृषतो नाम पार्थिवः । आदि पर्व १६६।६॥
६. ततो व्यतीते पृषते स राजा द्रुपदोऽभवत् ।...."भरद्वाजोऽपि हि भगवान् आरुरोह दिवं तदा ॥ आदि पर्व १३०।४३,४४॥
७. एतद्रसायनं पूर्वं वसिष्ठः कश्यपोऽङ्गिराः । जमदग्निर्भरद्वाजो भृगुरन्ये च तद्विधाः ॥ ४॥ प्रयुज्य प्रयता मुक्ताः श्रमव्याधिजराभयात् । यादवैच्छंस्तपस्तेपुस्तत्प्रभावान्महाबलाः ॥ ५॥