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१०० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
देश-रामायण अयोध्याकाण्ड सर्ग ५४ के अनुसार भरद्वाज का आश्रम प्रयाग के निकट गंगा यमुना के संगम पर था।
मन्त्रद्रष्टा-ऋग्वेद की सर्वानुक्रमणी में बार्हस्पत्य भरद्वाज को अनेक सूक्तों का द्रष्टा लिखा है। ५ दीर्घजीवी-तैत्तिरीय ब्राह्मण ३।१०।११ के अनुसार इन्द्र ने तृतीय
पुरुषायुष की समाप्ति पर भरद्वाज को वेद की अनन्तता का उपदेश किया था।' चरक संहिता के प्रारम्भ में भरद्वाज को अमितायु कहा है।' ऐतरेय आरण्यक १।२।२ में भरद्वाज को अनूचानतम और दीर्घजीवि
तम लिखा है। ताण्ड्य ब्राह्मण १५।३।७ के अनुसार यह काशिराज १० दिवोदास का पुरोहित था। मैत्रायणी संहिता ३।३७ और गोपथ
ब्राह्मण २।१।१८ में दिवोदास के पुत्र प्रतर्दन का पुरोहित कहा है ।' जैमिनीय ब्राह्मण३।२।४४ में दिवोदास के पौत्र क्षत्र का पुरोहित लिखा है । तैत्तिरीय ब्राह्मण ३।१०।११ से व्यक्त है कि दीर्घजीवी भरद्वाज के
साथ इन्द्र का विशेष सम्बन्ध था । अतः यही दीर्घजीवी भरद्वाज १५ व्याकरणशास्त्र का प्रवक्ता है, यह निश्चित है।
विशिष्ट घटना-मनुस्मृति १०।१०७ के अनुसार किसी महान् दुर्भिक्ष के समय क्षुधात भरद्वाज ने बृवु तक्षु से बहुत सी गायों का प्रतिग्रह किया था।
काल २० हम ऊपर कह चुके हैं कि भरद्वाज काशिपति दिवोदास के पुत्र प्रतर्दन का पुरोहित था। रामायण उत्तरकाण्ड ३८१६ के अनुसार
१. भरद्वाजो ह वा त्रीभिरायुभिब्रह्मचर्यमुवास । तं जीणि स्थविरं शयानमिन्द्र उपव्रज्योवाच । भरद्वाज ! यत्ते चपुर्थमायुर्दद्याम किं तेन कुर्याः ।
२, तेनायुरमितं लेभे भरद्वाजः सुखान्वितः । सूत्र० ११२६॥ अपरिमित२५ शब्द: सर्वत्रोक्तात् प्रमाणादधिकविषयः इति न्यायविदः । कात्यायनश्चाह अपरिमितश्च प्रमाणाद् भूय । प्राप० श्रौत २ । १ । १ रुद्रवृत्ति में उद्धृत ।
३. भरद्वाजो हावा ऋषीणामनूचानतमो दीर्घजीवितमस्तपस्वितम पास । तुलना करो-भरद्वाजो ह वै कृशो दीर्घः पलित पास । ऐ० ब्रा० १५।५।।
४. दिवोदासं वै भरद्वाजपुरोहितं नाना जना: पर्ययन्त।
५. एतेन वै भरद्वाजः प्रतर्दनं दवोदासि समनह्यत् । मै० सं० । एतेन ह वै भरद्वाजः प्रतर्दनं समनह्यत । गो० प्रा० ।
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