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पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य ६६ ऋजिष्या, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिरिम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र इन दश मन्त्रद्रष्टा पुत्रों और रात्रि नाम्नी मन्त्रद्रष्ट्री पुत्री का उल्लेख मिलता है । यजुःसर्वानुक्रमणी में यजुर्वेद ३४।३२ की ऋषिका कशिपा भरद्वाजहिता लिखी है। मत्स्य ४६।३६ तथा वायु ६६।१५६ के अनुसार गर्ग और नर भरद्वाज के साक्षात् पुत्र नहीं हैं, ५ अपितु चक्रवर्ती महाराज भरत की सुनन्दा रानी में भरद्वाज द्वारा नियोग से उत्पन्न महाराज भुमन्यु (भुवमन्यु) के पुत्र हैं । ये दोनों ब्राह्मण हो गये थे। इसी गर्ग के कूल में किसी गार्य ने व्याकरण, निरुक्त, सामवेदीय पदपाठ और उपनिदान सूत्र का प्रवचन किया था। इनका उल्लेख पाणिनीय अष्टाध्यायी और यास्कीय निरुक्त में मिलता है। १०
प्राचार्य-ऋक्तन्त्र के अनुसार भरद्वाज ने इन्द्र से व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया था।' ऐतरेय आरण्यक २।२।४ में लिखा है-इन्द्र ने भरद्वाज के लिये घोषवत् और ऊष्म वर्णों का उपदेश किया था। चरक संहिता सूत्रस्थान ११२३ से विदित होता है कि भरद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद पढ़ा था। वायु पुराण १०३।६३ के अनुसार तृणंजय ने १५ भरद्वाज के लिये पुराण का प्रवचन किया था। महाभारत शान्तिपर्व १५२।५ के अनुसार भृगु ने भरद्वाज को धर्मशास्त्र का उपदेश किया था। यही भगु मानव धर्मशास्त्र का प्रथम प्रवक्ता है ।
शिष्य-ऋक्तन्त्र के अनुसार भरद्वाज ने अनेक ऋषियों को व्याकरण पढ़ाया था। चरक सूत्रस्थान में अनेक ऋषियों को प्रायूर्वेद २० पढ़ाने का उल्लेख है। उन में से एक मात्रय पुनर्वसु है। वायु पुराण १०३१६३ में लिखा है कि भरद्वाज ने किसी अर्थशास्त्र का भी प्रवचन किया था ।
१. इन्द्रो भरद्वाजाय । १४॥
२. तस्य यानि व्यञ्जनानि तच्छरीरम्, यो घोषः स आत्मा, य ऊष्माण: २५ स प्राणः. "एतदु हैवेन्द्रो भरद्वाजाय प्रोवाच ।
३. तस्मै प्रोवाच भगवानायुर्वेदं शतक्रतुः। ४. तृणञ्जयो भरद्वाजाय । ५. भृगणाऽभिहितं शास्त्रं भरद्वाजाय पृच्छते । ६. भरद्वाज ऋषिभ्यः ॥१४॥
७. ऋषयश्च भरद्वाजात्"। अथ मैत्रीपरः पुण्यमायुर्वेदं पुनर्वसुः । ३० १।२७,३० ॥
८. गौतमाय भरद्वाजः । १. इन्द्रस्य हि स प्रणमति यो बलीयसो नमतीति भरद्वाजः ।