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पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य नाट्यशास्त्र १४।३२ की टीका में अभिनव गुप्त ने लिखा हैसंप्रयोगप्रयोजनम् ऐन्द्रेऽभिहितम् । भाग २, पृष्ठ २३३ ।
अन्य मत - पाणिनि के प्रत्याहार सूत्रों पर नन्दिकेश्वर विरचित काशिका (श्लोक २) की उपमन्युकृत तत्त्वविमर्शिनी टीका में लिखा
तथा चोक्तमिन्द्रेण-अन्त्यवर्णसमुद्भूता धातवः परिकीर्तिताः । इस वचन का भाव हमारी समझ में नहीं पाया ।
परिभाषाओं का मूल-नागेश भट्ट के शिष्य वैद्यनाथ ने परि भाषेन्दुशेखर की व्याख्या करते हए काशिका टीका में परिभाषाओं का मूल ऐन्द्र तन्त्र है ऐसा संकेत किया है।'
१० ऐन्द्र और कातन्त्र का भेद हम पूर्व लिख चुके हैं कि डा० वेलवेल्कर कातन्त्र को ऐन्द्र तन्त्रमानते हैं । उनका यह मत सर्वथा अयुक्त है, क्योंकि भट्टारक हरिश्चन्द्र और दुर्गाचार्य जैसे प्रामाणिक प्राचार्यों ने ऐन्द्र व्याकरण के जो सूत्र उद्धृत किये हैं, वे कातन्त्र व्याकरण में उपलब्ध नहीं होते । १५ इतना ही नहीं, भट्टारक हरिश्चन्द्र द्वारा उद्धृत स्त्रानुसार ऐन्द्र व्याकरण में 'वर्ण-समूह' का निर्देश था, परन्तु कातन्त्र में उसका अभाव स्पष्ट है । पुरानो अनुश्रुति के अनुसार ऐन्द्र तन्त्र पाणिनीय तन्त्र से कई गुना विस्तृत था, परन्तु कातन्त्र पाणिनीय तन्त्र का चतुर्थांश भी नहीं है।
ऐन्द्र व्याकरण और जैन ग्रन्थकार हेमचन्द्र आदि जैन ग्रन्थकारों का मत है कि भगवान् महावीर स्वामी ने इन्द्र के लिये जिस व्याकरण का उपदेश किया वही लोक में ऐन्द्र व्याकरण नाम से प्रसिद्ध हुआ। कई जैन ग्रन्थकार जैनेन्द्र व्याकरण को महावीर स्वामी प्रोक्त मानते हैं । वस्तुतः ये दोनों मत २५
अयुक्त हैं।
अति प्राचीन वैदिक ग्रन्थकारों के मतानुसार इन्द्र ने बृहस्पति से - १. प्राचीनवैयाकरगनये वाचनिकानि (परिभाषेन्दुशेखर पृष्ठ ७) । प्राचीनेति इन्द्रादीत्यर्थः । काशिकाटीका ।
२. जैन साहित्य और इतिहास प्र०सं० पृष्ठ ६३-६५, द्वि० सं० २२-२४ । ३०