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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
शब्दशास्त्र का अध्ययन किया था, महावीर स्वामी से नहीं। महावोर स्वामी तथागत बुद्ध के समकालीन हैं, इन्द्र इन से कई सहस्र वर्ष पूर्व अपना व्याकरण लिख चुका था। जैनेन्द्र व्याकरण आचार्य पूज्यपाद अपर नाम देवनन्दो विरचित है। यह हम 'पाणिनि से अर्वाचीन व्याकरणकार' प्रकरण में लिखेंगे ।
अन्य कृतियाँ १. आयुर्वेद-चरक में लिखा है इन्द्र ने भरद्वाज को आयुर्वेद पढ़ाया था।' वायुपुराण ६२।२२ में लिखा है कि भरद्वाज ने आयुर्वेद संहिता की रचना को और उसके पाठ विभाग करके शिष्यों को पढ़ाया। इस से प्रतीत होता है कि इन्द्र ने भरद्वाज के लिये सम्पूर्ण आयुर्वेद (पाठों तन्त्रों) का प्रवचन किया था।
सुश्रत के प्रारम्भ में आचार्य-परम्परा का निर्देश करते हुए लिखा है कि भगवान् धन्वतरि ने इन्द्र से शल्यतन्त्र का अध्ययन किया था।
२. अर्थशास्त्र-कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में बाहुदन्ती-पुत्र का मत उद्धृत किया है। प्राचीन टीकाकारों के अनुसार बाहुदन्ती१५ पुत्र इन्द्र है । महाभारत शान्ति पर्व अ० ५६ में बाहुदन्तक अथशास्त्र
का उल्लेख मिलता है।
मीमांसाशास्त्र-श्लोकवार्तिक की टीका में पार्थसारथि मिश्र किसी पुरातन ग्रन्थ का वचन उद्धृत करता है। उस में इन्द्र को मीमांसाशास्त्र का प्रवक्ता कहा है ।
४. छन्दःशास्त्र-इन्द्रप्रोक्त छन्दःशास्त्र का उल्लेख यादवप्रकाश ने पिङ्गल छन्दःशास्त्र की टीका के अन्त में किया है।
५. पुराण-वायु पुराण १०३।६० में लिखा है कि इन्द्र ने पुराणविद्या का प्रवचन किया था ।
१. पूर्व पृष्ठ ८६, टि० १ । २. आयुर्वेदं भरद्वाजश्चकार सभिषक्क्रियम् । तमष्टघा पुनर्व्यस्य शिष्येभ्यः प्रत्यपादयत् ॥
३. पूर्व पृष्ठ ८६, टि० ४।
४. नेति बाहुदन्तीपुत्रः-शास्त्रविददष्टकर्माकर्मसु विषादं गच्छेत् । अभि।अभिजनप्रज्ञाशौचशौर्यानुरागयुक्तानमात्यान् कुर्वीत् गुणप्राधान्यादिति । १८ ॥
५. पूर्व पृष्ठ ८८, टि/ ६. पूर्व पृष्ठ ८९, टि० ६ ।