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. संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
- प्राचार्य-इन्द्र के न्यूनातिन्यून पांच प्राचार्य थे-प्रजापति, बृहस्पति, अश्विनीकुमार, भृत्यु अर्थात यम और कौशिक विश्वामित्र । छान्दोग्य उपनिषद् ८७-११ में लिखा है कि इन्द्र ने प्रजापति से आत्मज्ञान सीखा था। श्लोकवार्तिक के टीकाकार पार्थसारथि मिश्र द्वारा उद्धृत पुरातन वचन के अनुसार इन्द्र ने प्रजापति से मीमांसाशास्त्र पढ़ा था ।' गोपथ ब्राह्मण १।१।२५ में इन्द्र और प्रजापति का संवाद है। इन तीनों स्थानों में उल्लिखित प्रजापनि कौन है यह अज्ञात है । बहत सम्भव है वह कश्यप प्रजापति हो । ऋक्तन्त्र के अनुसार इन्द्र ने बृहस्पति से शब्दशास्त्र का अध्ययन किया था । बार्हस्पत्य अथशास्त्र विषयक सूत्रों में बृहस्पति से नीतिशास्त्र पढ़ने का उल्लेख है।' पिङ्गल छन्द के टीकाकार यादवप्रकाश के मत में दुश्च्यवन =इन्द्र ने बृहस्पति से छन्दःशास्त्र का अध्ययन किया था । चरक और सुश्रुत में लिखा है कि इन्द्र ने अश्वि-कुमारों से आयुर्वेद पढ़ा था ।
वायुपुराण १०३।६० के अनुसार मृत्यु =यम ने इन्द्र के लिये पुराण १५ का प्रवचन किया था। जैमिनीय ब्रा० २१७६ के अनुसार इन्द्र देवा
सुर संग्राम में चिरकाल पर्यन्त व्यापृत रहने से वेदों को भूल गया था, उसने पुनः (अपने शिष्य) कौशिक विश्वामित्र से वेदों का अध्ययन किया।
शिष्य-शांखायन आरण्यक के वंशब्राह्मण के अनुसार विश्वा२० मित्र ने इन्द्र से यज्ञ और अध्यात्म विद्या पढ़ी थी। ऋक्तन्त्र के पूर्वो
१. तद्यथा ब्रह्मा प्रजापतये प्रोवाच, सोऽपीन्द्राय, सोऽप्यादित्याय । पृष्ठ ८. काशी सं०।
२. देखो पूर्व पृष्ठ ६२, ब्रह्मा के प्रकरण में उद्धृत।
३. बृहस्पतिरथाचार्य इन्द्राय नीतिसर्वस्वमुपदिशति । ग्रन्थ के प्रारम्भ में । २५ प्राचीन बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र इस से भिन्न था ।
४. .... लेभे सुराणां गुरुः । तस्माद् दुश्च्यवन "। छन्दःटीका के अन्त में । उद्धृत वै० वा० इतिहास, ब्राह्मण और आरण्यक भाग । ___५. अश्विभ्यां भगवाञ्छत्र: । चरक सूत्र १।५॥ अश्विभ्यामिन्द्रः । सुश्रुत सू० १।१६।।
६. मृत्युश्चेन्द्राय वै पुनः । ३० ७. यद्ध वा असुरैर्महासंग्रामं संयेते तद्ध वेदान् निराचकार । तान् ह
विश्वामित्रादधि जगे। तेन ह वै कौशिक ऊचे ।। ८. विश्वामित्र इन्द्रात् १५॥१॥