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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रवचन किया था। नन्दी शिव का प्रियतम शिष्य और उसका अनुचर था।
काल-शिव का काल सतयुग का चतुर्थ चरण है । इस प्रकार शिव का प्रादुर्भाव आज से लगभग ११ सहस्र वर्ष पूर्व है। ५. दीर्घजीवी- असाधारण प्रखण्ड ब्रह्मचर्य, योगज शक्ति और
रसायन के सेवन से शिव ने मृत्यु को जीत लिया था। वे असाधारण दीर्थजीवी थे। इसी कारण उन्हें मृत्युञ्जय भी कहा जाता है ।
- शिव-प्रोक्त अन्य शास्त्र-श्री कविराज सूरमचन्द जी ने अपने
'पायुर्वेद का इतिहास' ग्रन्थ में पृष्ठ ८३-८६ तक शिवप्रोक्त १२ ग्रन्थों १० का उल्लेख किया है । इन में अधिकतर आयुर्वेदसंबन्धी हैं। अन्य
ग्रन्थों में वैशालाक्ष अर्थशास्त्र, धनुर्वेद, वास्तुशास्त्र, नाट्यशास्त्र और छन्दःशास्त्र प्रमुख हैं।
मीमांसा-शास्त्र-सुचरित मिश्र ने मीमांसा श्लोकवार्तिक की काशिका नाम्नी टीका में महेश्वर प्रोक्त मीमांसा शास्त्र का उल्लेख १५ किया है -
गुरुपर्वक्रमात्मकश्च सम्बन्धो यथेहैव कैश्चिदुक्तः-ब्रह्मा महेश्वरो वा मीमांसां प्रजापतये प्रोवाच, प्रजापतिरिन्द्राय, इन्द्र प्रादित्यायेत्येवमादि । भाग १, पृष्ठ ६॥
२-बृहस्पति (१०००० वि० पूर्व) बृहस्पति के शब्दशास्त्र-प्रवक्तृत्व का वर्णन पूर्व अध्याय में किया जा चुका है । हैमबृहद्वृत्त्यवर्णि, यामलाष्टक तन्त्र और सारस्वतभाष्य के जो उद्धरण शिव के प्रकरण में दिए हैं, उन में भी बृहस्पति
के शब्दशास्त्र-प्रवचन का स्पष्ट निर्देश प्राप्त होता है। २५ बृहस्पति के परिचय आदि के विषय में जो कुछ भी वक्तव्य था,
वह पूर्व अध्याय में (पृष्ठ ६४-६५) बृहस्पति के प्रसङ्ग में लिख चुके।
बार्हस्पत्य तन्त्र का प्रवचन प्रकार महाभाष्य का पूर्व पृष्ठ ६५ (टि. १) पर जो उद्धरण दिया है,