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________________ ८४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रवचन किया था। नन्दी शिव का प्रियतम शिष्य और उसका अनुचर था। काल-शिव का काल सतयुग का चतुर्थ चरण है । इस प्रकार शिव का प्रादुर्भाव आज से लगभग ११ सहस्र वर्ष पूर्व है। ५. दीर्घजीवी- असाधारण प्रखण्ड ब्रह्मचर्य, योगज शक्ति और रसायन के सेवन से शिव ने मृत्यु को जीत लिया था। वे असाधारण दीर्थजीवी थे। इसी कारण उन्हें मृत्युञ्जय भी कहा जाता है । - शिव-प्रोक्त अन्य शास्त्र-श्री कविराज सूरमचन्द जी ने अपने 'पायुर्वेद का इतिहास' ग्रन्थ में पृष्ठ ८३-८६ तक शिवप्रोक्त १२ ग्रन्थों १० का उल्लेख किया है । इन में अधिकतर आयुर्वेदसंबन्धी हैं। अन्य ग्रन्थों में वैशालाक्ष अर्थशास्त्र, धनुर्वेद, वास्तुशास्त्र, नाट्यशास्त्र और छन्दःशास्त्र प्रमुख हैं। मीमांसा-शास्त्र-सुचरित मिश्र ने मीमांसा श्लोकवार्तिक की काशिका नाम्नी टीका में महेश्वर प्रोक्त मीमांसा शास्त्र का उल्लेख १५ किया है - गुरुपर्वक्रमात्मकश्च सम्बन्धो यथेहैव कैश्चिदुक्तः-ब्रह्मा महेश्वरो वा मीमांसां प्रजापतये प्रोवाच, प्रजापतिरिन्द्राय, इन्द्र प्रादित्यायेत्येवमादि । भाग १, पृष्ठ ६॥ २-बृहस्पति (१०००० वि० पूर्व) बृहस्पति के शब्दशास्त्र-प्रवक्तृत्व का वर्णन पूर्व अध्याय में किया जा चुका है । हैमबृहद्वृत्त्यवर्णि, यामलाष्टक तन्त्र और सारस्वतभाष्य के जो उद्धरण शिव के प्रकरण में दिए हैं, उन में भी बृहस्पति के शब्दशास्त्र-प्रवचन का स्पष्ट निर्देश प्राप्त होता है। २५ बृहस्पति के परिचय आदि के विषय में जो कुछ भी वक्तव्य था, वह पूर्व अध्याय में (पृष्ठ ६४-६५) बृहस्पति के प्रसङ्ग में लिख चुके। बार्हस्पत्य तन्त्र का प्रवचन प्रकार महाभाष्य का पूर्व पृष्ठ ६५ (टि. १) पर जो उद्धरण दिया है,
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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