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________________ पाणिनोयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य नुरु लिखा है। उससे विदित होता है कि शिव जन्म से ही परमज्ञानी थे। उन्होंने किसी से विद्याध्ययन नहीं किया था, अर्थात् वे साक्षात्कृतधर्मा थे। शिव का शास्त्रज्ञान-भारतीय वाङमय में ब्रह्मा के साथ-साथ शिव को भी अनेक विद्याओं का प्रवर्तक माना गया है। महाभारत ५ शान्तिपर्व अ० १४२ । ४७ (कुम्भघोण संस्क०) में सात महान् वेदपारगों में शिव की गणना भी की है। महाभारत के इसी पर्व के प्र० २८४ में लिखा है सांख्याय सांख्यमुख्याय सांख्ययोगप्रवतिने ॥ ११४ ॥ गीतवावित्रतत्त्वज्ञो गीतवादनकप्रियः ॥१४२॥ शिल्पिक, शिल्पिना श्रेष्ठः सर्वशिल्पप्रवर्तकः ॥ १४८ ॥ अर्थात्-शिव सांख्ययोग ज्ञान का प्रवर्तक, गीतवादित्र का तत्त्वज्ञ, शिल्पियों में श्रेष्ठ तथा सर्वविध शिल्पों का प्रवर्तक था । महाभारत शान्तिपर्व २८४ । १९२ में शिव को वेदाङ्गों का भी प्रवर्तक कहा हैं वेदात् षडङ्गान्युद्धृत्य । मत्स्य पुराण अ० २५१ के प्रारम्भ में वर्णित १८ प्रख्यात वास्तुशास्त्रोपदेशकों में विशालाक्ष=शिव की भी गणना की है । आयुर्वेद के रसतन्त्रों में शिवको रसविद्या का परम ज्ञाता कहा है । आयुर्वेद के अनेक ग्रन्थों में शिव के अनेक योग उदधृत हैं। २० ___ कौटिल्य अर्थशास्त्र में स्थान-स्थान पर विशालाक्ष के मतों का निरूपण उपलब्ध होता है। महाभारत शान्तिपर्व ५६ । ८१, ८२ के अनुसार विशालाक्ष ने दश सहस्र अध्यायों में अर्थशास्त्र का संक्षेप किया था। शिष्य-शिव ने अनेक शास्त्रों का प्रवचन किया था । इसलिए २५ उनके शिष्य भी अनेक रहे होंगे । परन्तु उनके नामादि ज्ञात नहीं हैं। यादवप्रकाश कृत पिङ्गल छन्दःशास्त्र की टीका के अन्त में जो श्लोक मिलते हैं, उन में प्रथम के अनुसार शिव ने बृहस्पति को छन्दःशास्त्र का उपदेश किया था। द्वितीय श्लोक के अनुसार गुह को और तृतीय श्लोक के अनुसार पार्वती और नन्दी को छन्दःशास्त्र का ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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