________________
११ पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य ८१ ऊपर नाम गिनाए हैं।'
नाम-स्तव का महत्त्व-भारतीय वाङमय में शिवसहस्रनाम, विष्णुसहस्रनाम, कार्तिकेयस्तव', याज्ञवल्क्य अष्टोत्तरशतनाम आदि अनेक स्तव अथवा स्तोत्र उपलब्ध होते हैं । ये नाम-स्तव अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इन से स्तोतव्य व्यक्ति के जीवनवृत्त पर महत्त्वपूर्ण ५ प्रकाश पड़ता है । नामस्तव भी संक्षिप्त इतिहास अथवा चरितलेखन की एक प्राचीन शलो है। साम्प्रतिक इतिहास-लेखकों ने इन नाम- ' स्तवों का अभी तक इतिहास की दृष्टि से कुछ भी मूल्याङ्कन नहीं किया । अतएव उन्होंने इतिहासलेखन में इन नामस्तवों का किञ्चिन्मात्र उपयोग नहीं किया। हमें भी इन नामस्तवों का उपर्युक्त १० महत्त्व कुछ समय पूर्व ही समझ में आया है । यद्यपि महाभारत अनुशासन पवं अ० १७ में पठित शिवसहस्र-नाम स्तवों में ऐतिहासिक अंश के साथ प्राधिदैविक तथा अध्यात्म अंश का भी संमिश्रण हो गया है, तथापि इस में ऐतिहासिक अंश अधिक है। शिवसहस्रनाम से विदित होने वाले अनेक जीवनवृत्तों की वैदिक लौकिक उभयविध १५ ग्रन्थों से भी पुष्टि होती है। हम महाभारतीय शिवसहस्रनाम-स्तव से विदित होने वाले वृत्त में से कतिपय महत्त्वपूर्ण अंशों का उल्लेख प्रागे करेंगे।
प्रधान नाम-शिव के शिव, भव, शंकर, शम्भु, पिनाकी, शूलपाणी, महेश्वर, महादेव, स्थाणु, गिरीश, विशालाक्ष और त्र्यम्बक प्रभृति २० प्रधान और प्रसिद्धतम नाम है।
शर्व-भव-शतपथ ११७३।८ में लिखा है कि प्राच्यदेशवासी शिव के लिए शर्व शब्द का व्यवहार करते हैं, और बाहीक' भव
का।
महादेव-महाभारत कर्णपर्व ३४ । १३ के अनुसार त्रिपुरदाह २५
१. तत्र नामपाठे किञ्चिदधिकानि षट् शतनामान्युपनभ्यन्ते । ७३ | श्लोक'की नीलकण्ठ की व्याख्या । .२. महा० वन० अ० २३३ ॥
३. सतलज से सिंधुनद पर्यन्त का देश । पञ्चानां सिन्धुषष्ठानामनन्तरं ये समाश्रितः । बाही का नाम ते देशाः । महा० कर्ण० ४४१७॥
४. शर्व इति यथा प्राच्या पाचक्षते, भव इति यथा बाहीकाः ।
३०