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८. संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास शास्त्रनिर्देशक कुछ श्लोक उदघृत किए हैं । वे इस प्रकार हैं
यस्मिन् व्याकरणान्यष्टौ निरूप्यन्ते महान्ति च ॥ १० ॥ तत्राचं ब्राह्ममुदितं द्वितीयं चान्द्रमुच्यते। तृतीयं याम्यमाख्यातं चतुर्थ रौद्रमुच्यते ॥ ११॥ वायव्यं पञ्चमं प्रोक्तं षष्ठं वारुणमुच्यते ।
सप्तमं सौम्यमाख्यातमष्टमं वैष्णवं तथा ॥ १२ ॥ इस में भी रौद्र ( रुद्र=शिवप्रोक्त) व्याकरण का निर्देश है। ५-लारस्वतभाष्य में भी लिखा है
समुद्रवद् व्याकरणं महेश्वरे तरर्धकुम्भोद्धरणं बृहस्पतौ । तद्भागभागाच्च शतं पुरन्दरे कुशाग्रविन्दूत्पतितं हि पाणिनौ ॥ भाष्य व्याख्या-प्रपञ्च' में श्लोक का निम्न पाठान्तर उपलब्ध होता है
समुद्रवद् व्याकरणं महेश्वरे ततोऽम्बुकुम्भोद्धरणं बृहस्पतौ ।
तदभागभागाच्च शतं पुरन्दरे कुशाग्रबिन्दुग्रथितं हि पाणिनौ ।' १५ इस श्लोक से माहेश्वर व्याकरण की विशालता अत्यन्त स्पष्ट है ।
इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि शिव ने किसी व्याकरण-शास्त्र का प्रवचन किया था।
परिचय वंश-ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार शिव की माता का नाम सुरभि २० और पिता का नाम प्रजापति कश्यप था। शिब के १० सहोदर भाई
थे। ये भारतीय इतिहास में एकादश रुद्र कहाते हैं। सम्भवतः शिव इन में ज्येष्ठ था।
शिव के नाम-महाभारत अनुशासन पर्व अ० १७ में शिवसहस्रनाम-स्तव है। इस में शिव के १००८ नाम वर्णित है। शान्ति२५ पर्व अ० २८४ में भी शिवसहस्रनाम-स्तव है । इस में छ: सौ से कुछ
१. पुरुषोत्तमदेव विरचित भाष्यव्याख्या की टीका।।
२. पुरुषोत्तमदेव विरचित परिभाषावृत्ति (राजशाही संस्करण), अनुबन्ध ३ पृष्ठ १२६ ।