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________________ तृतीय अध्याय पानिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन आचार्य इस अध्याय में उन प्राचीन व्याकरण प्रवक्ता प्राचार्यों का वर्णन करेंगे, जिन का उल्लेख पाणिनीय अष्टक में नहीं मिलता । परन्तु वे पाणिनि से पूर्वभावी हैं, तथा जिनका व्याकरण-प्रवक्तृत्व ५ निर्विवाद है। १-शिव महेश्वर (९१५०० वि० पूर्व) शिव अपर नाम महेश्वर प्रोक्त व्याकरण का उल्लेख अनेक ग्रन्थों में मिलता है । यथा १-महाभारत शान्तिपर्व के शिवसहस्रनाम में शिव को षडङ्ग १० का प्रवर्तक कहा है वेदात् षडङ्गान्युद्धत्य । २८४ । १६२॥ षडङ्ग के अन्तर्गत व्याकरण प्रधान अङ्ग है । अतः शिव ने व्याकरण-शास्त्र का प्रवचन किया था, यह महाभारत के वचन से सुतरां सिद्ध है। २- श्लोकबद्ध पाणिनीय शिक्षा के अन्त में लिखा है थेनाक्षरसमाम्नायमधिगम्य महेश्वरात् । कृत्स्नं व्याकरणं प्रोक्तं तस्मै पाणिनये नमः ।। इसी श्लोक के आधार पर चतुर्दश प्रत्याहार-सूत्र माहेश्वर-सूत्र अथवा शिव-सूत्र कहे जाते हैं। ' ३-हैमबृहद्वृत्त्यवचूणि में पृष्ट ३ पर लिखा है ब्राह्ममैशानमैन्द्रञ्च प्राजापत्यं बहस्पतिम । स्वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् ।। . इसमें ऐशान अर्थात् ईशान (=शिव) प्रोक्त व्याकरण का स्पष्ट उल्लेख है। २५ ४-ऋग्वेदकल्पद्रुम के कर्ता केशव ने यामलाष्टक तन्त्र के उप . १५ २०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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