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व्याकरणशास्त्र की उत्पत्ति और प्राचीनता
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पांच व्याकरण काशिका वृत्ति (४।२।६०) में पांच व्याकरणों का उल्लेख मिलता है। परन्तु उसमें अथवा उसकी टीकानों में नाम निर्दिष्ट नहीं हैं। सम्भवत: ये ऐन्द्र, चान्द्र, पाणिनीय, काशकृत्स्न और आपिशल होंगे।
व्याकरण-शास्त्रों के तीन विभाग आज तक जितने व्याकरणशास्त्र बने हैं, उनको हम तीन विभागों में बांट सकते हैं । यथा
१. छान्दसमात्र-प्रातिशाख्यादि । २. लौकिकमात्र-कातन्त्रादि। ३. लौकिक वैदिक उभयविध-प्रापिशल, पाणिनीयादि ।
इन में लौकिक व्याकरण के जितने ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, वे सब पाणिनि से अर्वाचीन हैं।
व्याकरण-प्रवक्ताओं के दो विभाग इस समय हमें जितने व्याकरणप्रवक्ता प्राचार्यों का ज्ञान है, उन्हें १५ हम दो भागों में बांट सकते हैं१. पाणिनि से प्राचीन। २. पाणिनि से अर्वाचीन ।
पाणिनि से प्राचीन आचार्य पाणिनि ने अपने शब्दानुशासन में आपिशलि, काश्यप, गार्ग्य, गालव, चाक्रवर्मण, भारद्वाज, शाकटायन, शाकल्य, सेनक और स्फो- २० टायन इन दश शाब्दिकों का उल्लेख किया है। इन से अतिरिक्त शिव=महेश्वर, बृहस्पति, इन्द्र, वायु, भरद्वाज, भागुरि, पौष्करसादि,
१. पञ्चव्याकरण:।
२. कुछ लोग पञ्च व्याकरण का अर्थ सूत्रपाठ, धातुपाठ, गणपाठ, उणादिपाठ और लिङ्गानुशासन समझते हैं। तथा अन्य-पदच्छेद, समास, २५ अनुवृति, वृत्ति और उदाहरण । यदि यह कल्पना मानी जाये, तो 'पञ्चाङ्गव्याकरणः' निर्देश होना चाहिये । ३. देखो पूर्व पृष्ठ ६८ टि.१ ।