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नव व्याकरण
रामायण उत्तरकाण्ड ( ३६।४७) में नव व्याकरण का उल्लेख है । " महाराज राम के काल में अनेक व्याकरण विद्यमान थे, इसका निर्देश रामायण किष्किन्धा काण्ड ( ३।२९) में मिलता है । भण्डारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट पूना के संग्रह में 'गीतासार' नामक ग्रन्थ का १५ एक हस्तलेख है, उसमें भी नव व्याकरण का उल्लेख है । इस ग्रन्थ का काल अज्ञात है । श्रीतत्त्वविधि नामक वैष्णव ग्रन्थ में निम्न नौ व्याकरणों का उल्लेख मिलता है ।
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
का काल विक्रम की 8 वीं शताब्दी का अन्तिम चरण है ।'
अमर शब्द से सम्भवतः नामलिङ्गानुशासन का कर्ता अमरसिंह अभिप्रेत है। अमरसिंहकृत शब्दानुशासन का उल्लेख अन्यत्र नहीं मिलता । लौकिकी किंवदन्ती से इतना ज्ञात होता है कि अमरसिंह महाभाष्य का प्रकाण्ड पण्डित था । कुछ वर्ष हुए पञ्जाब प्रान्तीय जैन पुस्तक भण्डारों का एक सूचीपत्र पञ्जाब यूनिवर्सिटी लाहौर से प्रकाशित हुआ है । उसके भाग १ पृष्ठ १३ पर अमरसिंहकृत उणादिवृत्ति का उल्लेख है । यह अमरसिंह नामलिंगानुशासनकार है वा भिन्न व्यक्ति, यह अभी अज्ञात है ।
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ऐन्द्रं चान्द्रं काशकृत्स्नं कौमारं शाकटायनम् । सारस्वतं चापिशलं शाकल्यं पाणिनीयकम् ।।
रामायणकाल में कौन से नौ व्याकरण विद्यमान थे, यह अज्ञात
है ।"
१. जैन साहित्य और इतिहास, प्र० सं० पृष्ठ १६०, द्वि० सं० १६६ । २. अमरसिंहो हि पापीयान् सर्वं भाष्यमचूचुरत् ।
३. सोऽयं नवव्याकरणार्थवेत्ता । मद्रास ला जर्नल प्रेस १९३३ का संस्क० । ४. देखो पूर्व पृष्ठ ६० टिप्पणी ४ ।
५. गीतासारमिदं शास्त्र गीतासारसमुद्भवम् । अत्र स्थितं ब्रह्मज्ञानं वेदशास्त्रसमुच्चयम् ।। ५५ ।। अष्टादश पुराणानि नव व्याकरणानि च । निर्मथ्य चतुरो वेदान् मुनिना भारतं कृतम् ॥ ५७ ॥ हस्तलेख नं० १६४, सन्
१८८३-८४ ।
६. व्याक० द० इ० पृष्ठ ४३७ ।