________________
६८
संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
पाणिनि ने अपने शास्त्र में १० प्राचीन प्राचार्यों का नामनिर्देशपूर्वक उल्लेख किया है ।' इन के अतिरिक्त पाणिनि से प्राचीन १६ प्राचार्यों का उल्लेख विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है । १० प्रातिशाख्य और और ७ अन्य वैदिक व्याकरण उपलब्ध या ज्ञात हैं । इन प्रातिशाख्य मादि ग्रन्थों में ५ प्राचीन प्राचार्यों का उल्लेख मिलता है । यद्यपि किन्हीं प्रातिशाख्यों में शिक्षा तथा छन्द का समावेश उपलब्ध होता है, तथापि प्रातिशाख्यों को वैदिक व्याकरण कहा जा सकता है । अतः प्रातिशाख्यग्रन्थों में स्मृत आचार्य भी अवश्य ही व्याकरणप्रवक्ता रहे होंगे । उन की व्याकरणप्रवक्ता प्राचार्यों में गणना करने पर पुनरुक्त १० नामों को छोड़ कर लगभग ८५ पिच्यासी प्राचीन व्याकरणप्रवक्ता आचार्यों के नाम हमें ज्ञात हैं । परन्तु इस ग्रन्थ में हम केवल उन्हीं प्राचार्यों का उल्लेख करेंगे, जो पाणिनीय प्रष्टाध्यायी में निर्दिष्ट हैं, तथा जिन के व्याकरणप्रवक्ता होने में अन्य सुदृढ़ प्रमाण मिलते हैं । प्रातिशाख्यों में निर्दिष्ट प्राचार्यों का केवल नामोल्लेख रहेगा, विशेष १५ वर्णन इस ग्रन्थ में नहीं किया जायेगा ।
आठ व्याकरण- प्रवक्ता
अर्वाचीन ग्रन्थकार प्रधानतया प्राठ शाब्दिकों का उल्लेख करते हैं । हैमबृहद् वृत्त्यवचूर्णि में पृष्ठ ३ पर निम्न आठ व्याकरणों का उल्लेख है -
५
ब्राह्ममैशानमैन्द्रं च प्राजापत्यं बृहस्पतिम् । स्वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् ।।
इस में जो आठ व्याकरण गिनाए हैं - ब्राह्म, ऐशान ( = शैव ) ऐन्द्र, प्राजापत्य, बाह्स्पत्य, त्वाष्ट्र, पिशल और पाणिनीय ।
१. प्रापिशल ( श्र० ६।१।९२), काश्यप (अ०१ । २ । २५ ), गार्ग्य (श्र० २५ ८।३।२०), गालव ( श्र० ७ १/७४), चाक्रवर्मण ( श्र० ६ | १|१३०), भारद्वाज (०७/२/६३), शाकटायन ( ० ३ | ४ | १११ ), शाकल्य ( ० १|१|१६ ), सेनक (अ० ५।४।११२), स्फोटायन (अ० ३।१।१२३) ।
२. व्याकरणमष्टप्रभेदम् । दुर्गं निरुक्तवृत्ति ( आनन्दाश्रम सं०) पृष्ठ ७४ । व्याकरणेऽप्यष्टघाभिन्ने लक्षणैकदेशो विक्षिप्त: । दुर्ग निरुक्तवृत्ति, पृष्ठ ७८ । ३० लुठिताष्ट, व्याकरणः । प्रबन्धचिन्तामणि' पृष्ठ ६८ ।