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________________ व्याकरणशास्त्र को उत्पत्ति और प्राचीनता ६७ अर्थात् –वाणी पुराकाल में अव्याकृत (=व्याकरण-सम्बन्धी प्रकृति-प्रत्ययादि संस्कार से रहित अखण्ड पदरूप) बोली जाती थी। देवों ने [अपने राजा] इन्द्र से कहा कि इस वाणी को व्याकृत (= प्रकृति प्रत्ययादिसंस्कार से युक्त) करो।""""इन्द्र ने उस वाणी को मध्य से तोड़ कर व्याकृत (=प्रकृतिप्रत्ययादिसंस्कार से युक्त) ५ किया। माहेश्वर सम्प्रदाय व्याकरणशास्त्र में दो मार्ग अथवा सम्प्रदाय प्रसिद्ध हैं। एक ऐन्द्र और दूसरा माहेश्वर अथवा शैव । वर्तमान प्रसिद्धि के अनुसार कातन्त्र व्याकरण ऐन्द्र सम्प्रदाय का है, और पाणिनीय व्याकरण शैव १० सम्प्रदाय का। महाभारत के शान्तिपर्व के अन्तर्गत शिवसहस्रनाम में लिखा हैवेदात् षडङ्गान्युद्धृत्य । २८४।१९२ ॥ इस से स्पष्ट है कि बृहस्पति के समान शिव ने भी षडङ्गों का प्रवचन किया था। निरुक्त १।२० के विल्मग्रहणायेमं ग्रन्थं समाम्नासिषुर्वेदं च वेदाङ्गानि च । वचन में बहुवचन निर्देश भी इस बात का संकेत करता है कि वेदाङ्गों के प्राद्य प्रवचनकर्ता अनेक व्यक्ति थे। माहेश्वर तन्त्र के विषय में अगले अध्याय में विस्तार से लिखेंगे। व्याकरण का बहुविध प्रवचन पूर्व लेख से विस्पष्ट है कि व्याकरण वाङमय में ऐन्द्र तन्त्र सब से प्राचीन है। तदनन्तर अनेक वैयाकरणों ने व्याकरणशास्त्र का प्रवचन किया। उन के प्रवचनभेद से अनेक व्याकरण-ग्रन्थों की रचना हई। - पाणिनि से प्राचीन ८५ व्याकरण-प्रवक्ता इन्द्र से लेकर आज तक कितने व्याकरण बने, यह अज्ञात है। २५
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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