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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
ज्योतिष -वेदाङ्गान्तर्गत ज्योतिषशास्त्र के प्रवचन का निर्देश प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थ में उपलब्ध होता है ।'
११, वास्तुशास्त्र-मत्स्य पुराण में बृहस्पति को वास्तुशास्त्र का प्रवर्तक लिखा है।
१२. अगवतन्त्र-बृहस्पति ने किसी अगदतन्त्र का भी प्रवचन किया था।
- व्याकरण का आदि संस्कर्ता-इन्द्र पातञ्जल महाभाष्य से विदित होता है कि बृहस्पति' ने इन्द्र के लिये प्रतिपद-पाठ द्वारा शब्दोपदेश किया था । उस समय तक १० प्रकृतिप्रत्यय विभाग नहीं हा था। प्रथमतः इन्द्र ने शब्दोपदेश की
प्रतिपदपाठ-रूपी प्रक्रिया की दुरूहता को समझा, और उसने पदों के प्रकृति-प्रत्यय विभाग द्वारा शब्दोपदेश प्रक्रिया को प्रकल्पना की । इस का साक्ष्य तैत्तिरीय संहिता ६१४१७ में मिलता है
वाग्व पराच्यव्याकृतावदत् । ते देवा इन्द्रमब्रुवन, इमां नो वाचं १५ व्याकुविति ..तामिन्द्रो मध्यतोऽवक्रम्य व्याकरोत् ।
इस की व्याख्या करते हुये सायणाचार्य ने लिखा है ।
तामखण्डां वाचं मध्ये विच्छिद्य प्रकृतिप्रत्ययविभागं सर्वत्राकरोत् ।
१. चेद् बृहस्पतिमतं प्रमाणम् । प्रबन्धचिन्तामणि पृष्ठ १०६ ॥ २० २. तथा शुक्रबृहस्पती... अष्टादशैते विख्याता वास्तुशास्त्रोपदेशकाः । २५१॥३-४॥
३. पही बृहस्पति देवों का पुरोहित था। इसने अर्थशास्त्र की रचना की थी। यह चक्रवर्ती मरुत्त से पहले हुआ था। द्र०–महाभारत शान्ति० ७५।६।।
४. बृहस्पतिरिन्द्राय दिव्यं वर्षसहस्रं प्रतिपदोक्तानां शब्दानां शब्दपारायणं प्रोवाच । महाभाष्य अ० १, पा० २, प्रा० १॥ तुनना करो-दिव्यं वर्षसहस्रमिन्द्रो बृहस्पतेः सकाशात् प्रतिपदपाठेन शब्दान् पठन् नान्तं जगामेति । प्रक्रिया कौमुदी भाग १, पृष्ठ ७ । सम्भवत: यह पाठ महाभाष्य से भिन्न किसी ग्रन्थ से उद्धृत किया है ।
५. तुलना करो-मै० सं०४१५८|| का० सं० २७॥२॥ कपि० सं० ४२॥३॥ १० स (इन्द्रो) वाचैव वाचं व्यावर्तयद । मै० सं० ४।५।८।। शत० ४।१।३॥११॥
६. सायण ऋग्भाष्य उपोदधात, पूना संस्क० भा० १, पृष्ठ २६ ॥