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________________ ७३ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका तो दोनों सूत्रों का व्याख्यान करना चाहिये । कहीं कहीं तो सूत्रों पर उठाई गई शंका पर टीकाकार ने यहां तक कह दिया है कि 'इस विषय की पूछताछ गौतम से करना चाहिये, हमने तो यहां उनका अभिप्राय कहा है ।' सूत्रविरोध का कहीं कहीं ऐसा कहकर भी उन्होंने समाधान किया है कि 'यह विरोध तो सत्य है किन्तु एकान्तग्रहण नहीं करना चाहिये, क्योंकि, वह विरोध सूत्रों का नहीं है, किन्तु इन सूत्रों के उपसंग्रहणकर्ता आचार्य सकल श्रुत के ज्ञाता न होने से उनके द्वारा विरोध आ जाना संभव है । इससे वीरसेन स्वामी का यह मत जाना जाता है कि सूत्रों में पाठ-भेदादि परम्परागत आचार्यों द्वारा भी हो चुके थे। और यह स्वाभाविक ही है, क्योंकि, उनके उल्लेखों से ज्ञात होता है कि सूत्रों का अध्ययन कई प्रकार से चला करता था जिसके अनुसार कोई सूत्राचार्य थे , कोई उच्चारणाचार्य ५, कोई निक्षेपाचार्य ६ और कोई व्याख्यानाचार्य । इनसे भी ऊपर 'महावाचकों' का पद ज्ञात होता है । कषायप्राभृत के प्रकाण्ड ज्ञाता आर्यमंक्षु और नागहस्ति को अनेक जगह महावाचक कहा है । आर्यनन्दि का भी महावाचक रूप से एक जगह उल्लेख है। संभवत: ये स्वयं वीरसेन गुरु थे जिनका उल्लेख धवला की प्रशस्ति में भी किया गया है। १. होदु णाम तुम्हेहि वुत्तत्थस्स सच्चतं, बहुएसु सुत्तेसु वणप्फदीणं उवरि णिगोदपदस्स अणुवलंमादो। चोद्दसपुव्वधरो केवलणाणी वा, ण च वट्टमाणकाले ते अस्थि । ण च तेसि पासे सोदूणागदा वि संपहि उवलब्भंति । तदो धप्पं काऊ ण वे वि सुत्ताणि सुत्तासायण-भीरूहि आयरिएहि वक्खाणेयव्वाणि । धवला. अ. ५६७. २. सुत्ते वणप्फ दिसण्णा किण्ण णिहिट्ठा ? गोदमो एत्थ पुच्छे यव्वो । अम्हेहि गोदमो बादरणिगोदपदिट्ठिदाणं वणप्पदिसण्णं णेच्छदि त्ति तस्स अभिप्पाओ कहिओ। धवला. अ. ५६७ ३. कसायपाहुडसुत्तेणेदं सुत्तं विरुज्झदि त्ति वुत्ते सच्चं विरुज्णइ किंतु एयंतग्गहो एत्थ ण कायव्यो । कथं सुत्ताणं विरोहो ? ण, सुत्तोवसंधाराणमसयलसुद-धारयाइरियपरतंताणं विरोह-संभव-दसणादो। धवला अ. ५८९. ४. सुत्ताइरिय-वक्खाण-पसिद्धो उवलव्मदे । तम्हा तेसु सुत्ताइरिय-वक्खाण-पसिद्धेण, ध. २९४. ५. एसो उच्चारणाइरिय-अभिप्पाओ । धवला अ. ७६४. एदेसिमणियोगद्दाराणमुच्चारणाइरियो वएसबलेण परूवणं वत्तइस्सामो । जयध. अ. ८४२. ६. णिक्खेवाइरिय-परूविद-गाहाणमत्थं भणिस्सामो। धवला. अ. ८६३ ७. वक्खाणाइरिय-परूविंद वत्तइस्सामो । धवला. अ. १२३५. वक्खाणाइरियाणमभावादो । धवला. अ. ३४८. ८. महावाचयाणमजमखुसमणाणमुवदेसेण .......... महावाचयाणमजणंदीणं उवदेसेण । धवला. अ. १४५७. महावाचया अजिणंदिणो संतकम्भं करेंति । ट्ठिदिसंतकम्भं पयासंति । धवला. अ. १४५८. अजमखु-णागहत्थि-महावाचय-मुहकमल-विणिग्गएण सम्मत्तस्स । जयध. अ. ९७३.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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