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________________ ७ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका अतिरिक्त इन गाथाओं में से अनेक श्वेताम्बर साहित्य में भी मिली हैं । सन्मतितर्क की सात गाथाओं का हम ऊपर उल्लेख कर ही आये हैं। उनके सिवाय हमें ५ गाथाएं आचारांग में, १ बृहत्कल्पसूत्र में २, ३ दशवैकालिकसूत्र में ३, १ स्थनांग टीका में , १ अनुप्रयोगद्वार में ५ व २ आवश्यक-नियुक्ति में मिली हैं । इसके अतिरिक्त और विशेष खोज कने से दिगम्बर और श्वेताम्बर साहित्य में प्राय: सभी गाथाओं के पाये जाने की संभावना है। सूत्र-पुस्तकों में पाठ भेद व मतभेद - किंतु वीरसेनाचार्य के सन्मुख उपस्थित साहित्य की विशालता को समझने के लिये उनकी समस्त रचना अर्थात् धवला और जयधवलापर कम से कम एक विहंग-दृष्टि डालना आवश्यक है । यह तो कहने की आवश्यकता नहीं है कि उनके सन्मुख पुष्पदन्त, भूतबलि व गुणधर आचार्यकृत पूरा सूत्र-साहित्य प्रस्तुत था । पर इसमें भी यह बात उल्लेखनीय है कि इन सूत्र-ग्रंथों के अनेक संस्करण छोटे-बड़े पाठ-भेदों को रखते हुए उनके सन्मुख विद्यमान थे । उन्होंने अनेक जगह सूत्र-पुस्तकों के भिन्न-भिन्न पाठों व तज्जन्य मतभेदों का उल्लेख व यथाशक्ति समाधान किया है । कहीं कहीं सूत्रों में परस्पर विरोध पाया जाता था। ऐसे स्थलों पर टीकाकार ने निर्णय करने में अपनी असमर्थता प्रकट की है और स्पष्ट कह दिया है कि इनमें कौन सूत्र है और कौन असूत्र है इसका निर्णय आगम में निपुण आचार्य करें। हम इस विषय में कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि, हमें इसका उपदेश कुछ नहीं मिला । कहीं उन्होंने दोनों विरोधी सूत्रों का व्याख्यान कर दिया है, यह कह कर कि 'इसका निर्णय तो चतुर्दश पूर्वधारी व केवलज्ञानी ही कर सकते हैं, किन्तु वर्तमान काल में वे हैं नहीं, और अब उनके पास से सुनकर आये हुए भी कोई नहीं पाये जाते । अत: सूत्रों की प्रमाणिकता नष्ट करने से डरने वाले आचार्यों को १. गाथा नं. १४, १४९, १५०, १५१, १५२ (पाठभेद). २. गाथा नं. ६२ ३. गाथा नं. ३४, ७०, ७१ ४. गाथा नं. ८८. ५. गाथा नं. १४ ६. गाथा नं. ६८, १००. ७. केसु वि सुत्तपोत्थएसु पुरिसवेदस्संतरं छम्मासा । धवला अ. ३४५. केसु वि सुत्तपोत्थएसु उवल भइ, तदो एत्थ उवएसं लक्ष्ण वत्तव्वं । धवला. अ. ५९१. केसु वि सुत्तपोत्थएसु विदियमद्धमस्सिदूण परूविद-अप्पाबहुअभावादो । धवला अ. १२०६ केसु वि सुत्तपोत्थएसु एसो पाठो । धवला अ. १२४३ ८. तदो तेहि सुत्तेहि एदेसिं सुत्ताणं विरोहो होदि त्ति भणिदे जदि एवं उवदेसं लक्ष्ण इदं सुत्तं इदं चासुत्तमिदि आगम-णिउणा भणंतु, ण च अम्हे एत्थ वोत्तुं समत्था अलद्धोवदेससत्तादो। धवला.अ. ५६३.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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