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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका के बीच के प्रदेश में उत्कलिका ग्राम के समीप मगणवल्ली ग्राम में हुआ था । भीमरथि कृष्णा नदी की शाखा है आर इनके बीच का प्रदेश अब बेलगांव व धारवाड़ कहलाता है । वहीं यह बप्पदेव गुरु का सिद्धान्त- अध्ययन हुआ होगा । इस अध्ययन के पश्चात् उन्होंने महाबन्ध को छोड़ शेष पांच खंडों पर 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' नाम की टीका लिखी। तत्पश्चात् उन्होंने छठे खण्ड की संक्षेप में व्याख्या लिखी । इस प्रकार छहों खंडों के निष्पन्न हो जाने के पश्चात् उन्होंने कषायप्राभृत की भी टीका रची । उक्त पांच खंडों और कषायप्राभृत की टीका का परिमाण साठ हजार, और महामंध की टीका का 'पांच अधिक आठ हजार' था, और इस सब रचना की भाषा प्राकृत थी। .. धवला में व्याख्याप्रज्ञप्ति के दो उल्लेख हमारी दृष्टि में आये हैं । एक स्थान पर उसके अवतरण द्वारा टीकाकार ने अपने मत की पुष्टि की है । यथा - लोगो वादपदिट्ठिदो त्ति वियाहपण्णत्तिवयणादो (ध.१४३) दूसरे स्थान पर उससे अपने मत का विरोध दिखाया है और कहा है कि आचार्य भेद से वह भिन्न-मान्यता को लिये हुए है और इसलिये उसका हमारे मत से ऐक्य नहीं है । यथा - ‘एदेण वियाहपण्णत्तिसुत्तेण सह कधं ण विरोहो ? ण, एदम्हादो तस्स पुधसुदस्स आयरियभेएण भेदभावण्णस्स एयत्ताभावादो (ध. ८०८) इस प्रकार के स्पष्ट मतभेद से तथा उसके सूत्र कहे जाने से इस व्याख्याप्रज्ञप्ति को इन सिद्धान्त ग्रन्थों की टीका मानने में आशंका उत्पन्न हो सकती है। किन्तु जयधवला में एक स्थान पर लेखक ने बप्पदेव का नाम लेकर उनके और अपने बीच के मतभेद को बतलाया है । यथा - १. एवं व्याख्यानक्रममवाप्तवान् परमगुरुपरम्परया । आगच्छत् सिद्धान्तो द्विविधोऽप्यतिनिशितबुद्धिभयाम् ॥ १७ ॥ शुभ-रवि-नन्दिमुनिभयां भीमरथ-कृष्णमेखयो: सरिता: । मध्यमविषये रमणीयोत्कलिकाग्रामसामीप्यम् ॥ १७२ ॥ विख्यातमगणवल्लीग्रामेऽथ विशेषरूपेण । श्रुत्वा तयोश्च पावें तमशेषं बप्पदेवगुरुः ॥ १७३ ॥ अपनीय महाबन्धं षट्खण्डाच्छेषपंचखंडे तु ! व्याख्याप्रज्ञप्तिं च षष्ठं खंडं च तत: संक्षिप्य ॥ १७४ ॥ षण्णां खंडानामिति निप्पन्नानां तथा कषायाख्य-प्राभृतकस्य च षष्टिसहस्रग्रन्थप्रमाणयुताम् ॥ १७ ॥ व्यलिखत्प्राकृतभाषारुपां सम्यक्पुरातनव्याख्याम् । अष्टसहस्रग्रंथां व्याख्यां पश्चाधिकां महाबंधे ॥ १७६ ॥
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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