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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका उसे तत्त्वार्थ या तत्त्वार्थ सूत्र का व्याख्यान कहा है ' । इस पर से माना जाता है कि समन्तभद्र ने यह भाष्य उमास्वातिकृत तत्त्वार्थ सूत्र पर लिखा होगा । किन्तु यह भी संभव है कि उन उल्लेखों का अभिप्राय समन्तभद्रकृत इन्हीं सिद्धान्तग्रंथों की टीका से हो । इन ग्रन्थों की भी 'तत्वार्थमहाशास्त्र' नाम से प्रसिद्धि रही है, क्योंकि, जैसा हम ऊपर कह आये हैं, तुम्बुलूराचार्यकृत इन्हीं ग्रन्थों की 'चूड़ामणि' टीका को अकलंक देव ने तत्त्वार्थमहाशास्त्र व्याख्यान कहा है। इन्द्रनन्दि ने कहा है कि समन्तभद्र स्वामी द्वितीय सिद्धान्त की भी टीका लिखनेवाले थे, किन्तु उनके एक सधर्म ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया । उनके ऐसा करने का कारण द्रव्यादि-शुद्धि-करण-प्रयत्न का अभाव बतलाया गया है । संभव है कि यहां समन्तभद्र की उस भस्मक व्याधि की ओर संकेत हो, जिसके कारण कहा गया है कि उन्हें कुछ काल अपने मुनि आचार का अतिरेक करना पड़ा था। उनके इन्हीं भावों और शरीर की अवस्था को उनके सहधर्मी ने द्वितीय सिद्धान्त ग्रन्थ की टीका लिखने में अनुकूल न देख उन्हें रोक दिया हो। यदि समन्तभद्रकृत टीका संस्कृत में लिखी गई थी और वीरसेनाचार्य के समय तक, विद्यमान थी तो उसका धवला जयधवला में उल्लेख न पाया जाना बड़े आश्चर्य की बात होगी। ५. बप्पदेव गुरुकृत व्याख्याप्रज्ञप्ति सिद्धान्तग्रन्थों का व्याख्यानक्रम गुरु परम्परा से चलता रहा । इसी परम्परा में शुभनन्दि और रविनन्दि नाम के दो मुनि हुए, जो अत्यन्त तीक्ष्णबुद्धि थे। उनसे बप्पदेव गुरु ने वह समस्त सिद्धान्त विशेष रूप से सीखा । वह व्याख्यान भीमरथि और कृष्णमेख नदियों १. तत्वार्थसूत्रव्याख्यानगन्धहस्तिप्रवर्तकः । स्वामी समन्तभद्रोऽभूदेवागमनिदेशक :॥ (हस्तिमल्ल. विक्रान्तकौरवनाटक, मा. ग्रं. मा.) तत्वार्थ-व्याख्यान-षण्णवति-सहस्र-गंधहस्ति-महाभाष्य विधायक-देवागम कवीश्वर-स्याद्वादविद्याधिपति-समन्तभद्र ........। (एक प्राचीन कनाड़ी ग्रन्थ, देखो समन्तभद्र. पृ. २२०) । श्रीमत्तत्त्वार्थशास्त्राद्भुतसलिलमिघेरिद्धरत्नोद्भवस्य । प्रोत्थानारम्भकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यत्। (विद्यानन्द. आप्तमीमांसा) २. विलिखन् द्वितीयसिद्धान्तस्य व्याख्या सधर्मणा स्वेन । द्रव्यादिशुद्धिकरणप्रयत्नविरहात् प्रतिषिद्धम् ॥ १७० ॥ इन्द्र. श्रुतावतार
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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