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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका है। यथा - 'वृत्तिर्ग्रन्थजीवनयोः' । वृत्ति उसे कहते हैं जिसमें सूत्रों का ही विवरण हो, शब्द रचना संक्षिप्त हो और फिर भी सूत्र के समस्त अर्थों का जिसमें संग्रह हो । यथा - _ 'सुत्तस्सेव विवरणाए संखित्त-सह-रयणाए संगहिए-सुत्तासेसत्थाए वित्तसुत्तवयएसादो । (जयध. अ. ५२) २. शामकुंडकृत पद्धति __ इन्द्रनन्दिने दूसरी जिस टीका का उल्लेख किया है, वह शामकुंड नामक आचार्यकृत थी। यह टीका छठवें खण्ड को छोड़कर प्रथम पांच खण्डों पर तथा दूसरे सिद्धान्त ग्रंथ (कषायप्राभृत) पर भी थी। यह टीका पद्धति रूप थी । वृत्तिसूत्र के विषम-पदों का भंजन अर्थात् विश्लेषणात्मक विवरण को पद्धति कहते हैं । यथा वित्तिसुत्त-विसम-पयाभंजिए विवरणाए पड्डइ-ववएसादो (जयध. पृ. ५२) इससे स्पष्ट है कि शामकुंड के सन्मुख कोई वृत्तिसूत्र रहे हैं जिनकी उन्होंने पद्धति लिखी । हम ऊपर कह ही आये हैं कि कुन्दकुन्दकृत परिकर्म संभवत: वृत्तिरूप ग्रंथ था । अत: शामकुंड ने उसी वृत्ति पर और उधर कपायप्राभृत की यतिवृषभाचार्यकृत वृत्ति पर अपनी पद्धति लिखी। इस समस्त टीका का परिमाण भी बारह हजार श्लोक था और उसकी भाषा प्राकृत संस्कृत और कनाड़ी तीनों मिश्रित थी। यह टीका परिकर्म से कितने ही काल पश्चात् लिखी गई थी । इस टीका के कोई उल्लेख आदि धवला व जयधवला में अभी तक हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुए। ३. चूड़ामणिकर्ता तुम्बुलूराचार्य - इन्द्रनन्दि द्वारा उल्लिखित तीसरी सिद्धान्त टीका तुम्बुलूर नाम के आचार्य द्वारा लिखी गई। ये आचार्य 'तुम्बुलूर' नाम के एक सुन्दर ग्राम में रहते थे, इसी से वे तुम्बुलूराचार्य कहलाये, जैसे कुण्डकुन्दपुर में रहने के कारण पद्मनन्दि आचार्य की कुन्दकुन्द नाम से प्रसिद्धि हई। इनका असली नाम क्या था यह ज्ञात नहीं होता। इन्होंने छठवें खंड को छोड़ शेष दोनों सिद्धान्तों पर एक बड़ी भारी व्याख्या लिखी, जिसका नाम 'चूड़ामणि' था और १. काले तत: कियत्यपि गते पुन: शामकुण्डसंज्ञेन । आचायेंण ज्ञात्वा द्विभेदमप्यागम: कात्स्यात् ॥ १६ ॥ द्वादशगुणितसहस्रं ग्रन्थं सिद्धान्तयोरुभयो: । षष्ठेन विना खण्डेन पृथुमहाबन्धसंज्ञेन ॥ १६३॥ प्राकृतसंस्कृतकर्णाटभाषया पद्धति: परा रचिता ॥ इन्द्र. श्रुतावतार
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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