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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका नहीं हुआ । कुल का अर्थ कोषानुसार बुध भी होता है, और बुध सूर्य की आजू बाजू की राशियों से बाहर नहीं जा सकता । जान पड़ता है यहां कुलविल्लए का अर्थ 'कुलविलये' है। अर्थात् बुध की सूर्य की ही राशि में स्थिति होने से उसका विलय था । गाथा में मात्रा पूर्ति के लिये विलए का विल्लए कर दिया प्रतीत होता है। जब तक लग्न का समय नहीं दिया जाता तब तक ज्योतिष कुंडली पूरी नहीं कही जा सकती । इस कमी की पूर्ति भावविलग्गे' पद से होती है । 'भावविलग्गे' का कुछ ठीक अर्थ नहीं बैठता । पर यदि हम उसकी जगह 'भाणुविलग्गे' पाठ ले लें तो उससे यह अर्थ निकलता है कि उस समय सूर्य लग्न की राशि में था, और क्योंकि सूर्य की राशि अन्यत्र तुला बतला दी है, अत: ज्ञात हुआ कि धवला टीका को वीरसेन स्वामी ने प्रात: काल के समय पूरी की थी जब तुला राशि के साथ सूर्यदेव उदय हो रहे थे। इस विवेचन द्वारा उक्त प्रशस्ति के समयसूचक पद्यों का पूरा संशोधन जो जाता है, और उससे धवला की समाप्ति का काल निर्विवाद रूप से शक ७३८ कार्तिक शुक्ल १३, तदनुसार तारीख ८ अक्टूबर सन् ८१६, दिन बुधवार का प्रात:काल, सिद्ध हो जाता है। उससे वीरसेन स्वामी के सूक्ष्म ज्योतिष ज्ञान का भी पता चल जाता है। अब हम उन तीन पद्यों का शुद्धता से इस प्रकार पढ़ सकते हैं - अठतीसम्हि सतसए विक्कमरायंकिए सु-सगणामे । वासे सुतेरसीए भाणु-विलग्गे धवल-पक्खे ॥६॥ जगतुंगदेव-रजे रियम्हि कुंभम्हि राहुणा कोणे। सूरे तुलाए संते गुरुम्हि कुलविल्लए होते ॥ ७॥ चावम्हि तरणि -वुत्ते सिंघे सुक्कम्मि मीणे चंदम्मि । कत्तिय-मासे एसा टीका हु समाणिआ धवला ॥८॥ इस पर से धवला की जन्मकुंडली निम्नप्रकार से खींची जा सकती है - सू.बु.गु. २च. १. Apte : Sanskrit English Dictionary.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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