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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका राहु की परिक्रमा अठारह वर्ष में पूरी होती है अत: गत ११२३ वर्ष में उसकी ६२ परिक्रमाएं पूरी हुईं और शेष सात वर्ष में वह लगभग पांच राशि आगे बढ़ा । राहु की गति सदैव वक्री होती है । तदनुसार शक ७३८ में राहु की स्थिति तुला से पांचवी राशि अर्थात् कुंभ में होना चाहिए । अतएव प्रशस्ति में हम राहु का सम्बन्ध कुंभम्हि से लगा सकते हैं। राहु यहां तृतीयान्त पद क्यों है इसका समाधान आगे करेंगे। शनि की परिक्रमा तीस वर्ष में पूरी होती है । तदनुसार गत ११२३ वर्ष में उसकी ३७ परिक्रमाएं पूरी हुई और शेष १३ वर्ष में वह कोई पांच राशि आगे बढ़ा । अतः शक ७३८ में शनि धनु राशि में होना चाहिए । जब धवलाकार ने इतने ग्रहों की स्थितियां दी हैं, तब वे शनि जैसे प्रमुख ग्रह को भूल जाय यह संभव न जान हमारी दृष्टि प्रशस्ति के चापम्हि वरणिवुत्ते पाठ पर गई । चाप का अर्थ तो धनु होता ही है, किन्तु वरणिवुत्ते से शनि का अर्थ नहीं निकल सका । पर साथ ही यह ध्यान में आते देर न लगी कि संभवत: शुद्ध पाठ तरणि -वुत्ते (तरणिपुत्रे) है । तरणि सूर्य का पर्यायवाची है और शनि सूर्य पुत्र कहलाता है । इस प्रकार प्रशस्ति में शनि का भी उल्लेख मिल गया और इन तीन ग्रहों की स्थिति से हमारे अनुमान किए हुए धवला के समाप्तिकाल शक संवत् ७३८ की पूरी पुष्टि हो गई। इन ग्रहों का इन्हीं राशियों में योग शक ७३८ के अतिरिक्त केवल शक ३७८, ५५८, ९१८, १०९८, १२७८, १४५८, १६३८ और १८१८ में ही पाया जाता है, और ये कोई भी संवत् धवला के रचनाकाल के लिये उपयुक्त नहीं हो सकते। ___ अब ग्रहों में से केवल तीन अर्थात् केतु, मंगल और बुध ही ऐसे रह गये जिनका नामोल्लेख प्रशस्ति में हमारे दृष्टिगोचर नहीं हआ। केतुकी स्थिति सदैव राह से सप्तम राशि पर रहती है, अत: राहू की स्थिति बता देने पर उसकी स्थिति आप ही स्पष्ट हो जाती है कि उस समय केतु सिंह राशि में था । प्रशस्ति के शेष शब्दों पर विचार करने से हमें मंगल और बुध का पता लग जाता है । प्रशस्ति में 'कोणे' शब्द आया है। कोण शब्द कोष के अनुसार मंगल का भी पर्यायवाची है । जैसा आगे चलकर ज्ञात होगा, कुंडली-चक्र में मंगल की स्थिति कोने में आती है, इसी से संभवत: मंगल का यह पर्याय कुशल कवि को यहां उपयुक्त प्रतीत हुआ । अत: मंगल की स्थिति राहु के साथ कुंभ राशि में थी । राहु पद की तृतीया विभक्ति इसी साथ को व्यक्त करने के लिये रखी गई जान पड़ती है। अब केवल 'भावविलग्गे' और 'कुलविल्लए' शब्द प्रशस्ति में ऐसे बच रहे हैं जिनका अभी तक उपयोग ___१.Apte : Sanskrit English Dictionary.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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