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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका शब्द पर जाती है जिसका अर्थ होता है 'ऋते' या 'रिक्ते' । संभवत: उसी से कुछ पूर्व जगतुंगदेव का राज्य गत हुआ था और अमोघवर्ष सिंहासनारुढ हुये थे । इस कल्पना से आगे गाथा नं. ९ में जो बोद्दणराय नरेन्द्र का उल्लेख है, उसकी उलझन भी सुलझ जाती है। बोद्दणराय संभवत: आमेघवर्ष का ही उपनाम होगा । या वह वड्डिगकाही रूप हो और वड्डिग अमोघवर्ष का उपनाम हो । अमोघवर्ष तृतीय का उपनाम वद्दिग या वड्डिग का तो उल्लेख मिलता ही है । यदि यह कल्पना ठीक हो तो वीरसेन स्वामी के इन उल्लेखों का यह तात्पर्य निकलता है कि उन्होंने धवला टीका शक संवत् ७३८ में समाप्त की जब जगतुंगदेव का राज्य पूरा हो चुका था और बोद्दणराय (अमोघवर्ष) राजगद्दी पर बैठ चुके थे। 'जगतुंगदेवजे रियम्हि' और 'बोद्दणरायणरिंदे णरिंदचूडामणिम्हि भुंजते' पाठों पर ध्यान देने से यह कल्पना बहुत कुछ पुष्ट हो जाती है। अमोघवर्ष के राज्य के प्रारंभिक इतिहास को देखने से जान पड़ता है कि संभवतः गोविन्दराज ने अपने जीवन काल में ही अपने अल्पवयस्क पुत्र अमोघवर्ष को राजतिलक कर दिया था और उनके संरक्षक भी नियुक्त कर दिये थे, और आप राज्यभार से मुक्त होकर, आश्चर्य नहीं, धर्मध्यान करने लगे हों । नवसारी के शक ७३८ के ताम्रपटों में अमोघवर्ष के राज्य में किसी प्रकार की गड़बड़ी की सूचना नहीं है, किन्तु सूरत से मिले हुए शक संवत् ७४३ के ताम्रपटों में एक विप्लव के समन के पश्चात् अमोघवर्ष के पुन: राज्यारोहण का उल्लेख है । इस विप्लव का वृत्तान्त बड़ौदा से मिले हुए शक संवत् ७५७ के ताम्रपटों में भी पाया जाता है । अनुमान होता है कि गोविंदराज के जीवनकाल में तो कुछ गड़बड़ी नहीं हई किन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् राज्यसिंहासन के लिये विप्लव मचा जो शक संवत् ७४३ के पूर्व समन हो गया। अतएव शक ७३८ में जगतुंग (गोविन्दराज) जीवित थे इस कारण उनका उल्लेख किया और उनके पुत्र सिंहासनारुढ़ हो चुके थे इससे उनका भी कथन किया, यह उचित जान पड़ता है। यदि यह कालसम्बंधी निर्णय ठीक हो तो उस परसे वीरसेन स्वामी के कुल रचनाकाल व धवला के प्रारंभकाल का भी कुछ अनुमान लगाया जा सकता है । धवला टीका ७३८ शक में समाप्त हुई और जयधवला उसके पश्चात् ७५९ शक में तात्पर्य यह कि कोई २० वर्ष में जयधवला के ६० हजार श्लोक रचे गये जिसकी औसत एक वर्ष में ३ हजार आती है । इस अनुमान से धवला के ७२ हजार श्लोक रचने में २४ वर्ष लगना चाहिये । अत: उसकी रचना ७३८ - २४ = ७१४ शक में प्रारंभ हुई होगी, और चूंकि जयधवला के २० हजार १.Altekar : The Rashtrakutas and their times p.71 ft.
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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