SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४८ वीर-निर्वाण काल पूर्वोक्त प्रकार से षट्खंडागम की रचना का समय वीरनिर्वाण पश्चात् सातवीं शताब्दि के अन्तिम या आठवीं शताब्दि के प्रारम्भिक भाग में पड़ता है । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि महावीर भगवान् का निर्वाणकाल क्या है ? ___जैनियों में एक वीर निर्वाण प्रचलित है जिसका इस समय २४६५ वां वर्ष चालू है। इसे लिखते समय मेरे सन्मुख 'जैन मित्र' का तारीख १४ सितम्बर १९३९ का अंक प्रस्तुत है जिस पर वीर सं. २४६५ भादों सुदी १, दिया हुआ है । यह संवत् वीर निर्वाण दिवस अर्थात् पूर्णिमान्त मास-गणना के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष १४ के पश्चात् बदलता है । अत: आगामी नवम्बर ११ सन् १९३९ से निर्वाण संवत् २४६६ प्रारम्भ हो जायेगा । इस समय विक्रम संवत् १९९६ प्रचलित है और यह चैत्र शुक्ल पक्ष से प्रारम्भ होता है । इसके अनुसार निर्वाण संवत् और विक्रम संवत् में २४६६ - १९९६ = ४७० वर्ष का अन्तर है। दोनों संवतों के प्रारम्भ मास में भेद होने से कुछ मासों में यह अन्तर ४६९ वर्ष आता है जैसा कि वर्तमान में । अत: इस मान्यता के अनुसार महावीर का निर्वाण विक्रम संवत् से कुछ मास कम ४७० वर्ष पूर्व हुआ। किन्तु विक्रम संवत् के प्रारम्भ के सम्बन्ध में प्राचीन काल से बहुत मतभेद चला आ रहा है जिसके कारण वीर निर्वाण काल के सम्बन्ध में भी कुछ गड़बड़ी और मतभेद उत्पन्न हो गया है। उदाहरणार्थ, जो नन्दिसंघ की प्राकृत पट्टावली ऊपर उद्धृत की गई है उसमें वीरनिर्वाण से ४७० वर्ष पश्चात् विक्रम का जन्म हुआ, ऐसा कहा गया है, और चूंकि ४७० वर्ष का ही अन्तर प्रचलित निर्वाण संवत् और विक्रम संवत् में पाया जाता है, इससे प्रतीत होता है कि विक्रम संवत् विक्रम के जन्म से ही प्रारम्भ हो गया था । किन्तु मेरुतुंगकृत स्थविरावली ' तपागच्छ पट्टावली, जिन प्रभसूरिकृत पावापुरीकल्प, प्रभचन्द्रसूरि कृत प्रभावकचरित ' आदि ग्रंथों में उल्लेख है कि विक्रम संवत् का प्रारम्भ विक्रम राजा के राज्यकाल से या उससे भी कुछ पश्चात् प्रारम्भ हुआ। १. विक्रम-रज्जारंभा पुरओ सिरि-वीर-णिबुई भणिया । सुन्न-मुणि-वेय-जुतो विक्कम-कालाउ जिणकालो॥ (मेरुतुंग-स्थविरावली) २. तद्राज्यं तु श्रीवीरात् सप्तति-वर्ष-शत-चतुष्टये ४० संजातम्। (तपागच्छ पट्टावली) ३. मह मुक्ख-गमणाओं पालय नंद-चंदगुत्ताइ-राईसु वोलीणेसु चउसयसत्तरेहिं वासेहिं विक्कमाइच्च राया होही। (जिनप्रभसूरि-पावापुरीकल्प) ४. इत: श्रीविक्रमादित्य: शास्त्यवन्तीं नराधिप: । अनृणां पृथिवीं कुर्वन् प्रवर्तयति वत्सरम्॥ (प्रभाचन्द्रसूरि - प्रभावकचरित
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy