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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
भौगोलिक उल्लेख
धरसेनाचार्य गिरिनगर की चन्द्रगुफामें रहते थे । यह स्थान काठियावाड़ के अन्तर्गत है। यह बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ की निर्वाणभूमि होने से जैनियों के लिये बहुत प्राचीन काल से अब तक महत्वपूर्ण है । मौर्य राजाओं के समय से लगाकर गुप्त काल अर्थात् ४ थी, ५ वीं शताब्दि तक इसका भारी महत्व रहा जैसा कि यहां पर एक ही चट्टान पर पाये गये अशोक मौर्य, रुद्रदामन और गुप्तवंशी स्कन्धगुप्त के समय के लेखों से पाया जाता है ।
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धरसेनाचार्य ने 'महिमा' में सम्मिलित संघको पत्र भेजा था जिससे महिमा किसी नगर या स्थान का नाम ज्ञात होता है, जो कि आन्ध्र देश के अन्तर्गत वेणाक नदी के तीरपर था । वेण्या नाम की एक नदी बम्बई प्रान्त के सतारा जिले में है और उसी जिले में महिमानगढ़ नाम का एक गांव भी है, जो हमारी महिमा नगरी हो सकता है । इससे अनुमानत: यही सतारा जिले में वह जैन मुनियों का सम्मेलन हुआ था । यदि यह अनुमान ठीक हो तो मानना पड़ेगा कि सतारा जिले का भाग उस समय आन्ध्र देश के अन्तर्गत था । आन्ध्रों का राज्य पुराणों व शिलादि लेखों पर से ईस्वी पूर्व २३२ से ई० सन् २२५ तक पाया जाता है । इसके पश्चात कम से कम इस भाग पर आन्ध्रों का अधिकार नहीं रहा । अतएव इस देश को आन्ध्र विषयान्तर्गत लेना इसी समय के भीतर माना जा सकता है। गिरनगर से लौटते हुए पुष्पदंत और भूतबलि ने जिस अंकुलेश्वर स्थान में वर्षाकाल व्यतीत किया था वह निस्संदेह गुजरात में भडोंच जिले का प्रसिद्ध नगर अंकलेश्वेश्र ही होना चाहिये । वहां से पुष्पदन्त जिस वनवास देश को गये वह उत्तर कर्नाटका का ही प्राचीन नाम है जो तुंगभद्रा और वरदा नदियों के बीच बसा हुआ है । प्राचीन काल में यहां कंदम्ब वंश का राज्य था। जहां इसकी राजधानी 'बनवासि' थी वहां अब भी उस नाम का एक ग्राम विद्यमान है । तथा भूतबलि जिस द्रमिल देश को गये वह दक्षिण भारत का वह भाग है जो मद्रास से सेरिंगपट्टम और कामोरिन तक फैला हुआ है और जिसकी प्राचीन राजधानी कांचीपुरी थी । प्रस्तुत ग्रंथ की रचना - संबंधी इन भौगोलिक सीमाओं से स्पष्ट जाना जाता है कि उस प्राचीन काल में काठियावाड़ से लगाकर देश के दक्षिणतम भाग तक जैन मुनियों का प्रचुरता से बिहार होता था और उनके बीच पारस्परिक धार्मिक व साहित्यिक आदान-प्रदान सुचारूरूप से चलता था । वह परिस्थिति विक्रम की दूसरी शताब्दि तक के समय का संकेत करती है ।