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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
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श्रीयुत् बैरिस्टर काशीप्रसादजी जायसवाल ने इसी मत को मान देकर निश्चित किया कि चूंकि जैन ग्रंथों में ४७० वर्ष पश्चात् विक्रम का जन्म हुआ कहा गया है और चूंकि विक्रम का राज्यारंभ उनकी १८ वर्ष की आयु में होना पाया जाता है, अत: वीर निर्वाण का ठीक समय जानने के लिये ४७० वर्ष में १८ वर्ष और जोड़ चाहिये अर्थात् प्रचलित विक्रम संवत् से ४८८ वर्ष पूर्व महावीर का निर्वाण हुआ । '
एक और तीसरा मत हेमचंद्राचार्य के उल्लेख पर से प्रारम्भ हो गया है । हेमचन्द्र ने अपने परिशिष्ट पर्व में कहा है कि महावीर की मुक्ति से १५५ वर्ष जाने पर चन्द्रगुप्त राजा हुआ'। यहां उनका तात्पर्य स्पष्टतः चन्द्रगुप्त मौर्य से है । और चूंकि चन्द्रगुप्त से लगाकर विक्रम तक का काल सर्वत्र २५५ वर्ष पाया जाता है, अतः वीर निर्वाण का समय विक्रम से २५५ + १५५ = ४१० वर्ष पूर्व ठहरा। इस मत के अनुसार ४७० में से ६० वर्ष घटा देने से ठीक विक्रम पूर्व वीर निर्वाण काल ठहरता है । पाश्चिमिक विद्वानों, जैसे डॉ. याकोबी' डॉ. चार्पेटियर' आदि ने इसी मत का प्रतिपादन किया है और इधर मुनि कल्याणविजयजीने ' भी इसी मत की पुष्टि की है।
किन्तु दिगम्बर सम्प्रदाय में जो उल्लेख मिलते हैं वे इस उलझन को बहुत कुछ -सुलझा देते हैं। इन उल्लेखों के अनुसार शक संवत् की उत्पत्ति वीरनिर्वाण से कुछ मास अधिक ६०५ वर्ष पश्चात् हुई तथा जो विक्रम संवत प्रचलित है और जिसका अन्तर
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१. Bihar and Orissa Research Society Journal, 1915.
२. एवं च श्रीमहावीरमुक्तेर्वर्षशते गते । पंचपंचाशदधि के चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः। (परिशिष्ट - पर्व)
३. Sacred books of the East XXII.
४. Indian Antiquary XLIII.
५. 'वीर निर्वाण संवत् और जैनकालगणना, संवत् १९८७.
६. णिव्वाणे वीरजिणे छव्वास-सदेसु पंचवरिसेसु । पणमासेसु संजादो सेगणिओ अहवा ॥
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(तिलोयपण्णति)
वर्षाणां षट्ातीं त्यत्तवा पंचाग्रां मासपंचकम् । मुक्तिं गते महावीरे शकराजस्ततोऽभवत् ॥ (जिनसेन - हरिवंशपुराण)
पणछस्सयवस्सं पणमासजुदं गमिय वीरणिव्वुइदो । सगराजो......॥ ८५० ॥
( नेमिचन्द्र - त्रिलोकसार) एसो वीरजिणिंद- णिव्वाण-गद- दिवसादो जाव सगकालस्य आदी होदि तावदिय - कालो कुदो ६०५ -५, एदम्भि काले सग णरिंद-कालम्मि पक्खित्ते वद्धमाणजिण- णिव्वुदि- कालागमणादो वृत्तं च
पंच य मासा पंच य वासा छच्चेव होंति वाससया । सगकालेण य सहिया भावेयव्वो तदो रासी ॥