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३. जम्बू
षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
३६ समस्त श्रुत के ज्ञायक और अन्त में केवलज्ञानी हुए। उनके पश्चात् क्रमशः विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु ये पांच श्रुतकेवली हुए । उनके पश्चात् विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिल, गंगदेव, और धर्मसेन, ये ग्यारह एकादश अंग और दशपूर्व के पारगामी हुए। तत्पश्चात् नक्षत्र, जयपाल, पांडु, ध्रुवसेन
और कंस, ये पांच एकादश अंगों के धारक हुए और इनके पश्चात् सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोहार्य, ये चार आचार्य एक आचारंग के धारक और शेष श्रुत के एकदेश ज्ञाता हुए। इसके पश्चात् समस्त अंगों और पूर्वो का एकदेश ज्ञान आचार्य परम्परासे आकर धरसेनाचार्य को प्राप्त हुआ (६५-६६) । यह परम्परा इस प्रकार है -
महावीर की शिष्य-परम्परा १. गौतम
१५. धृतिसेन २. लोहार्य
केवली १६. विजय
१७. बुद्धिल
१८. गंगदेव ४. विष्णु
१९. धर्मसेन ५. नन्दिमित्र ६. अपराजित श्रुतकेवली २०. नक्षत्र ७. गोवर्धन
२१. जयपाल ८. भद्रबाहु
२२. पाण्डु एकादशांगधारी
२३. ध्रुवसेन ९. विशाखाचार्य
२४. कंस १०. प्रोष्ठिल ११. क्षत्रिय दशपूर्वी २५. सुभद्र १२. जय
२६. यशोभद्र १३. नाग
२७. यशोबाहु आचारांगधारी १४. सिद्धार्थ
२८. लोहार्य