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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ५०३ के परिमाण के अनुसार स्थिति समान होती है । बन्धोत्कृष्ट स्थिति के समान ही उनका दोनों प्रकार का उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म होता है। २- जिन कर्मों का परोदय में उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है उनकी उत्कृष्ट यत्स्थिति तो बन्धोत्कृष्ट स्थिति के ही समान होती है । मात्र निषेकों के परिमाण के अनुसार उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्म बन्धोत्कृष्ट स्थिति से एक समय कम होता है । ३- जिन कर्मों का स्वोदय में उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम से उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म प्राप्त होता है उनकी उत्कृष्ट यत्स्थितिसत्कर्म और निषेकों के परिमाण के अनुसार उत्कृष्ट स्थिति सत्कर्म तज्जातीय कर्म के उत्कृष्ट स्थितिबन्ध से एक आवलि कम होता है । मात्र सम्यक्त्व का उक्त दोनों प्रकार का उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म अन्तर्मुहूर्त कम जानना चाहिए, क्योंकि मिथ्यात्व गुणस्थान में मिथ्यात्व का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होकर अन्तर्मुहूर्त में सम्यक्त्व प्राप्त होने पर मिथ्यात्व की अन्तर्मुहूर्त कम उत्कृष्ट स्थिति का सम्यक्त्वरूप से संक्रमण होता है। ४- जिन कर्मों का परोदय में उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम से उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म प्राप्त होता है उनकी उत्कृष्ट यस्थिति तज्जातीय कर्म के उत्कृष्ट स्थितिबन्ध से एक आवलि कम होती है और निषकों के परिमाण के अनुसार उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म तजातीय कर्म के उत्कृष्ट स्थितिबन्ध से एक समय अधिक एक आवलि कम होता है । मात्र सम्यग्मिथ्यात्व का उक्त दोनों प्रकार का उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म मिथ्यात्व के उत्कृष्ट स्थितिबन्ध से अन्तर्मुहर्त कम जानना चाहिए । कारण का कथन स्पष्ट है। ५- चारों आयुओं का उत्कृष्ट अबाधा काल सहित उत्कृष्ट स्थितिबन्ध उत्कृष्ट यस्थिति सत्कर्म होता है और अपने-अपने निषेकों के परिमाण के अनुसार निषेकगत उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म होता है। ___ इसी प्रकार जघन्य स्थितिसत्कर्म के विषय में भी अलग-अलग प्रकृतियों को ध्यान में रखकर नियम घटित कर लेने चाहिए। __ अनुभागसत्कर्म का विचार करते हुए पहले क्रम से स्पर्धकप्ररूपणा, घातिसंज्ञा और स्थान संज्ञा का प्ररूपण करके जघन्य और उत्कृष्ट स्वामित्व और कुछ मार्गणाओं में अल्पबहुत्व का विचार किया गया है । अनुभागसत्कर्म के पश्चात् प्रदेश उदीरणा के आश्रय से अल्पबहुत्व बतलाते हुए मूल और उत्तरप्रकृतियों का आलम्बन लेकर वह बतलाया गया है। आगे उत्तरप्रकृतिसंक्रम
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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