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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका प्रदेशसत्कर्म ये चार भेद करके सर्वप्रथम मूल और उत्तर प्रकृतियों की अपेक्षा सत्कर्म का विचार किया है। उसमें भी मूल प्रकृतियों के स्वामित्व की सूचना मात्र करके उत्तरप्रकृतियों के स्वामित्व को विस्तार से बतला कर एक जीव की अपेक्षा काल, एक जीव की अपेक्षा अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भङ्गविचय काल, अन्तर और स्वामित्व को स्वामित्व के बल से जान लेने की सूचना करके स्वस्थान और परस्थान दोनों प्रकार के अल्पबहुत्वों में से परस्थान अल्पबहुत्व का ओघ से और चारों गतियों के साथ असंज्ञी मार्गणा में विचार किया है। भुजगार, पदनिक्षेप और वृद्धि यहाँ पर नहीं है, अत: इनके विषय में इतनी मात्र सूचना देकर प्रकृतिस्थानसत्कर्म के विषय में लिखा है कि मोहनीय को कषायप्राभृत के अनुसार जानना चाहिए और शेष कर्मों की प्रकृतिस्थानप्ररूपणा सुगम है । ५०२ स्थितिसत्कर्म का विचार करते हुए मूलप्रकृतिस्थितिसत्कर्म का वर्णन सुगम कहकर उत्तर प्रकृतियों के स्थितिसत्कर्म का जघन्य और उत्कृष्ट अद्वाच्छेद तथा जघन्य और उत्कृष्ट स्वामित्व का विस्तार से विचार कर तथा एक जीव की अपेक्षा काल आदि अनुयोगद्वारों को स्वामित्व के बल से जाननेकी सूचनामात्र करके अल्पबहुत्व दिया गया है। यहाँ पर श्रद्धाच्छेद का विचार करते हुए 'जट्ठिदि' और 'जाओ ट्ठिदीओ' ये शब्द आये हैं । प्राय: अनेक स्थानोंपर 'जं ट्ठिदि' भी मुद्रित है। पर उससे 'जट्ठिदि' का ही ग्रहण करना चाहिए। इन शब्दों द्वारा दो प्रकार की स्थितियों का निर्देश किया गया है । 'लट्ठिदि' शब्द 'यत्स्थिति' का द्योतक है और 'जाओ ट्ठिदीओ' से स्थितिगत निषेकों का परिमाण लिया गया है। उदाहरणस्वरूप पाँच निद्राओं की उत्कृष्ट यत्स्थिति पूरी तीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण बतलाई है और निषेकों के अनुसार स्थितियाँ एक समय कम तीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण बतलाई है । अभिप्राय इतना है कि पाँच निद्राओं का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होते समय उदय नहीं होता, इसलिए पूरी स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर होकर भी उस समय सब निषेक एक कम तीस कोड़ाकोड़ीसागरप्रमाण होते हैं, क्योंकि अनुदयवाली प्रकृतियों का एक निषेक उदय समय के पूर्व स्तिबुक संक्रमण के द्वारा अन्य प्रकृतिरूप परिणत होता रहता है, इसलिए इनकी यत्स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण होकर भी निषेकों के अनुसार स्थिति एक समय कम होती है । यहाँ बन्ध के समय आबाधा काल के भीतर प्राक्तनबद्ध कर्मों के निषेक का सत्व होने से एक समय कम तीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण निषेक बन जाते हैं इतना विशेष जानना चाहिए । यहाँ पर विशेष नियम इस प्रकार जानना चाहिए - १- जिन कर्मों का स्वोदय से स्थितिबन्ध होता है उनकी यत्स्थिति और निषेकों
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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