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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ५०४ में, मोहनीय सम्बन्धी प्रकृतिस्थानसंक्रम, जघन्य स्थितिसंक्रम, अनुभागसंक्रम, जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति के आश्रय से प्रदेशसंक्रम और स्वतन्त्ररूप से प्रदेशसंक्रम के अल्पबहुत्व का विचार करके प्रदेशसंक्रम अधिकार को पूर्ण किया गया है। इसके पश्चात् पहले कहे गये लेश्या, लेश्यापरिणाम, लेश्याकर्म, सात-असात, दीर्घ-हस्व, भवधारण, पुद्गलात्त, निधत्त-अनिधत्त, निकाचित-अनिकाचित, कर्मस्थिति और पश्चिमस्कन्ध इन अनुयोगद्वारों का पुन: पृथक्-पृथक् उल्लेख करके अलग-अलग सूचनाएँ दी गई हैं। अन्त में महावाचक क्षमाश्रमण के अभिप्रायानुसार अल्बहुत्व अनुयोगद्वार के आश्रय से सत्कर्म का विचार करते हुए उत्तरप्रकृतिसत्कर्म अल्पबहुत्वदण्डक, मोहनीय प्रकृतिस्थानसत्कर्म अल्पबहुत्व, उत्तर प्रकृतिस्थिति सत्कर्म अल्पबहुत्व, उत्तरप्रकृति अनुभाग सत्कर्म अल्पबहुत्व और उत्तरप्रकृतिप्रदेशसत्कर्म अल्पबहुत्व देकर अल्पबहुत्व के साथ चौबीस अनुयोगद्वार समाप्त करने के साथ धवला समाप्त होती है ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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