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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४८७ अतिशय गम्भीर होने से यहाँ अर्थविषम पदों के अर्थ की प्ररूपणा पंजिका स्वरूप से की जाती है। इससे यह निश्चित होता है कि प्रस्तुत मूलभूत षट्खंडागम में कृति-वेदनादि पूर्वोक्त २४ अनुयोगद्वारों में से प्रथम ६ अनुयोगद्वारों की ही प्ररूपणा की गयी है । शेष निबन्धन आदि १८ अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा श्री वीरसेन स्वामी ने स्वयं ही की है, जैसा कि उन्होंने उसके प्रारम्भ में इस वाक्य के द्वारा सूचित भी कर दिया है - भुदबलिभडारएणा जेणेदं सुत्त देसामासियभावेण लिहिदं तेणेदेण सुत्तेण सूचिदसेसश्रद्वारसअणियोगद्दारणं किंचि संखेवेण परूवणं कस्सामो । तं जहा - उक्त 'संतकम्मपंजिया' की उत्थानिका में की गयी सूचना के अनुसार तो वह शेष सभी १८ अनुयोगद्वार के ऊपर लिखी जानी चाहिये थी। परन्तु उपलब्ध वह उदयानुयोगद्वार तक ही है । इसकी जो हस्तलिखित प्रति हमारे सामने रही है वह श्री पं. लोकनाथजी शास्त्री के अन्यतम शिष्य श्री देवकुमारजी के द्वारा मूडबिद्रीस्थ श्री वीरवाणीविलास जैनसिद्धान्त भवन की प्रतिपर से लिखी गयी है । यह प्राय: अशुद्ध बहुत है। इसमें लेखक ने पूर्णाविराम, अर्धविराम और प्रश्नसूचक आदि चिन्हों का भी उपयोग किया है जो यत्र तत्र भ्रान्तिजनक भी हो गया है। पंजिका में जहाँ कही भी अल्पबहुत्व का प्रकरण प्राप्त हुआ है उसी के ऊपर प्राय: विशेष लिखा गया है, अन्य विषयों का स्पष्टीकरण प्राय: कहीं भी विशेष रूप से नहीं किया गया है । यहाँ पंजिकाकार ने जो संख्याओं का उपयोग अल्पबहुत्व के स्पष्टीकरणार्थ किया है वह किसआधार से किया है, यह समझ में नहीं आ सका है । इसमें प्राय: सर्वत्र अस्पष्ट स्वरूप से एक विशेष चिन्ह आया है। जो प्राय: संख्यात का प्रतीक दिखता है । उसके स्थान में हमने अंग्रेजी के दो (2) के अंक का उपयोग किया है। १. महाकम्मपयडियापाहुडस्स कदि-वेदणाओ (इ) चउवीसमणियोगद्दारेसु तत्थ कदि-वेदणा त्ति जाणि. अणियोगदाराणि वेदणाखंडम्मि, पुणोप (पस्स-कम्म-पयडि-बंधण त्ति) चत्तारिअणिओगहारेसु तत्थ बंध-बंधणिजणामाणियोगेहि सह वग्गणाखंडम्मि, पुणो बंधविधाणणामाणियोगद्दारो महाबंधम्मि, पुणो बंधगाणियोगो खुदाबंधम्मि च सप्पवंचेण परूविवाणि । पुणो तेहिंतो सेसद्वारसणियोगद्दाराणि संतकम्मे सव्वाणि परूविदाणि । तो वि तस्साइगंभीरत्तादो अत्थविसम पदाणमत्थे थोरुच्चयेण पंजियसरूवेण भणिरसामो । परिशिष्ट पृष्ठ १ ।
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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