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विषय-परिचय (पु.१६) कर्मप्रकृतिप्राभृत के कृति आदि २४ अनुयोगद्वारों में प्रथम १० अनुयोगद्वरों का संक्षिप्त परिचय यथास्थान कराया जा चुका है । यहाँ मोक्ष अनुयोगद्वार से लेकर शेष १४ अनुयोगद्वारों का परिचय कराया जाता है।
११. मोक्ष- मोक्ष अनुयोगद्वार का विचार नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों द्वारा करने की प्रतिज्ञा करके मात्र कर्मद्रव्यमोक्ष का विशेष विचार प्रकृत में किया गया है और शेष निक्षेपों के व्याख्यान को सुगम बतलाकर छोड़ दिया गया है । कर्मप्रकृतियाँ मूल और उत्तर के भेद से दो प्रकार की हैं, इसलिए कर्मद्रव्यमोक्ष के दो भेद हो जाते हैं - मूलप्रकृतिकर्मद्रव्यमोक्ष और उत्तरप्रकृतिकर्मद्रव्यमोक्ष । ये दोनों भी देशमोक्ष और सर्वमोक्ष के भेद से दो दो प्रकार के हैं। किसी मूल या उत्तर प्रकृति के प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों की अपेक्षा एकदेश का अभाव होना देशमोक्ष है और किसी मूल या उत्तर प्रकृति का प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों की अपेक्षा सर्वथा अभाव होना सर्वमोक्ष है, इसलिए देशमोक्ष और सर्वमोक्ष ये दोनों ही प्रकृतिमोक्ष, स्थितिमोक्ष, अनुभागमोक्ष और प्रदेशमोक्ष इन चार भागों में विभक्त हो जाते हैं । खुलासा इस प्रकार हैविवक्षित प्रकृति की निर्जरा होना या उसका अन्य प्रकृतिरूप से संक्रमित होना प्रकृतिमोक्ष कहलाता है । प्रदेशमोक्ष का विचार प्रकृतिमोक्ष के ही समान है, किसी भी प्रकृति की विवक्षित स्थिति का अभाव चार प्रकार से होता है - अपकर्षण द्वारा, उत्कर्षण द्वारा, संक्रमणद्वारा और अघ:स्थितिगलन द्वारा; इसलिए इन चारों में से किसी एक के आश्रय से विवक्षित स्थिति का अभाव होना स्थितिमोक्ष कहलाता है । स्थिति के जघन्यादि सब विकल्पों में स्थितिमोक्ष का विचार इसी प्रकार कर लेना चाहिए। अनुभागमोक्ष भी स्थितिमोक्ष के समान चार प्रकार से होता है, इसलिए अनुभाग के भी उत्कृष्टादि सब भेदों में उक्त प्रकार से अनुभागमोक्ष को घटित करके बतलाया गया है ।
यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि कर्मद्रव्यमोक्ष अनुयोगद्वार में सम्यग्दर्शन आदि गुणों के द्वारा जीव के बन्धन से मुक्त होने मात्र का विचार न करके प्रति समय बन्ध को प्राप्त होनेवाले कर्मों की प्रकृति आदि का अभाव किस किस प्रकार से होता रहता है इसका भी विचार किया गया है । जीवका कर्मों से छूटने का क्रम एक प्रकार का ही है। यदि सम्यगदर्शनादि गुणों के द्वारा कर्म से छुटकारा मिलता है तो नवीन बन्ध न होने से