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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
प्रदेश उदय - यहाँ मूलप्रकृति प्रदेश उदय की प्ररूपणा सब अनुयोगद्वारों के द्वारा जानकर करने योग्य बतलाकर उत्तरप्रकृतिप्रदेश उदय की प्ररूपणा में स्वामित्व के परिज्ञानार्थ 'सम्मत्तप्पत्तीए' आदि २ गाथाओं के द्वारा १० गुणश्रेणियों का निर्देश करके उक्त गुणश्रेणियों में कौन सी गुणश्रेणियाँ भवान्तर में संक्रान्त होती हैं, इसका उल्लेख करते हुए उत्कृष्ट व जघन्य प्रदेशउदयविषयक स्वामित्व का विवेचन किया गया है।
__एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व आदि अन्य अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा पूर्वोक्त स्वामित्व प्ररूपणा से ही सिद्ध करने योग्य बतलाकर तत्पश्चात् उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशउदयविषयक अल्पबहुत्व का विवेचन किया गया है।
भजाकार प्रदेश उदय की प्ररूपणा में प्रथमत: अर्थपद का निर्देश करके तत्पश्चात् स्वामित्व आदि अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा की गयी है । एक जीव की अपेक्षा काल प्ररूपणा प्रथमत: नागहस्ती क्षमाश्रमण के उपदेशानुसार और तत्पश्चात् अन्य उपदेश के अनुसार की गयी है।
पदनिक्षेपप्ररूपणा में स्वामित्व का विवेचन करते हुए तत्पश्चात् अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गयी है।
संतकम्मपंजिया निबन्धन, प्रक्रम, उपक्रम और उदय इन पूर्वोक्त चार अनुयोगद्वारों के ऊपर एक पंजिका भी उपलब्ध है जो पु.१५ के 'परिशिष्ट' में दी गयी है । यह पंजिका किसके द्वारा रची गयी है, इसका कुछ संकेत यहाँ प्राप्त नहीं है । उसकी उत्थानिका में यह बतलाया गया है कि 'महाकर्मप्रकृति प्राभृत' के जो कृति-वेदनादि २४ अनुयोगद्वार हैं उनमें से कृति और वेदना नामक २ अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा वेदनाखण्ड (पु.९-१२) में की गयी है । स्पर्श, कर्म, प्रकृति (पु.१३) और बन्धन अनुयोगद्वार के अन्तर्गत बन्ध एवं बन्धनीय (बन्धन अनुयोग द्वार चार प्रकार का है - बन्ध, बन्धनीय, बन्धक, और बन्धविधान) अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा वर्गणाखण्ड में की गयी है । बन्धन अनुयोगद्वार के अन्तर्गत बन्ध विधान नामक अवान्तर अनुयोगद्वार की प्ररूपणा महाबन्ध में विस्तारपूर्वक की गयी है । तथा उक्त बन्धन अनुयोगद्वार के अवान्तर अनुयोगद्वारभूत बन्धक अनुयोगद्वार की प्ररूपणा क्षुद्रकबन्ध (पु.७) में विस्तार से की गयी है । शेष १८ अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा सत्कर्म' में की गयी है । तथापि उसके