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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
४८२ आचार्य यतिवृषम द्वारा रचित कसायपाहुड के चूर्णिसूत्रों में भी इन उपशामनाभेदों के सम्बन्ध में प्राय: इसी प्रकार और इन्हीं शब्दों में कथन किया गया है । कसायपाहुड से इतनी ही विशेषता है कि यहाँ सर्वकरयोपशामना का 'गुणोपशामना' और देशकरणोपशामना का ‘अगुणोपशामना' इन नामान्तरों का उल्लेख अधिक किया गया है । कसायपाहुड की जयधवला टीका में उपशामना के पूर्वोक्त भेदों में से कुछ का स्वरूप इस प्रकार बतलाया
अकरणोपशामना - कर्मप्रवाद नामका जो आठवाँ पूर्वाधिकार है वहाँ सब कर्मों सम्बन्धी मूल और उत्तर प्रकृतियों की विषाक पर्याय और अविषाक पर्याय का कथन द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार बहुत विस्तार से किया गया है। वहाँ इस अकरणोपशामना की प्ररूपणा देखना चाहिये।
देशकरणोपशामना - दर्शनमोहनीय का उपशम कर चुकने पर उदयादि करणों में से कुछ तो उपशान्त और कुछ अनुपशान्त रहते हैं। इसलिये यह देशकरणोपशामना कही जाती है । ... द्वितीय पूर्व की पाँचवी 'वस्तु' से प्रतिबद्ध कर्मप्रकृति नामका चौथा प्राभृत अधिकार प्राप्त है । वहाँ इस देशकरणोपशामना की प्ररूपणा देखना चाहिये, क्योंकि, वहाँ इसकी प्ररूपणा विस्तारपूर्वक की गयी है ।
सर्वकरणोपशामना - सब करणों की उपशामना का नाम सर्वकरणोपशामना
अप्रशस्तोपशामना - संसारपरिभ्रमण के योग्य अप्रशस्त परिणामों के निमित्त से होने के कारण यह अप्रशस्तोपशामना कही जाती है।
इन उपशामना भेदों का उल्लेख प्राय: इसी प्रकार से श्वेताम्बर कर्मप्रकृति ग्रन्थ १ एतो सुत्तविहासा । तं जहा । उपसामणा कदिविधात्ति ? उपसामणा दुविहा करणोवसामणा
अकरणोवसामणा च । जा सा अकरणोवसामणा तिस्से दुबे णामधेयाणि -अकरणोवसामणा त्ति वि अणुदिण्णोवसामणा त्ति वि । एसा कम्मपवादे । जा सा करणोवसामणा सा दुविहा - देसकरणोवसामणा त्ति वि सव्वकरणोवसामणा त्ति वि । देसकरणोव-सामणाए दुवे णामाणि देसकरणोबसामणा त्ति वि अप्पसत्थउक्सामणा त्ति वि। एसा कम्मफ्यडीसु। जा सा सव्वकरणोव सामणा तिस्से वि दुवे णामाणि-सव्वकरणोवसामणा त्ति वि पसत्थकरणोवसामणा त्ति वि । एदाए तत्थ पयदं । क.पा. सुत्त पृ. ७०७ - ८