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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४८१ वृद्धिउदीरणा में प्रथमत: स्थानसमुत्कीर्तना का कथन करके तत्पश्चात् स्वामित्व, आदि शेष अनुयोगद्वारों का कथन भी अति संक्षेप में किया गया है । इस प्रकार से प्रदेश उदीरणा की प्ररूपणा हो चुकने पर यहाँ उदीरणा उपक्रम समाप्त हो जाता है। उपशामना उपक्रम - यहाँ उपशामना के सम्बन्ध में निक्षेपयोजना करते हुए कर्मद्रव्यउपशामना के दो भेद बतलाये हैं - करणोपशामना और अकरणोपशामना । इनमें अकरणोपशामना का अनुदीर्णपशामना यह दूसरा भी नाम है । इसकी सविस्तर प्ररूपणा कर्मप्रवाद में की गयी है । करणोपशामना भी दो प्रकार की है - देशकरणोपशामना और सर्वकरणोपशामना । सर्वकरणोपशामना के और भी दोनाम हैं - गुणोपशामना और प्रशस्तोपशामना । इस सर्वकरणोपशामना की प्ररूपणा कसायपाहुड में की जायगी, ऐसा निर्देश करके यहाँ उसकी प्ररूपणा नहीं की गयी है । इसी प्रकार देशकरणोपशामना के भी दूसरे दो नाम हैं - अगुणोपशामना और अप्रशस्तोपशामना । इसी प्रकार देशकरणोपशामना के भी दूसरे दो नाम हैं - अगुणोपशामना और अप्रशस्तोपशामना । इसी अप्रशस्तोपशामना को यहाँ अधिकार प्राप्त बतलाया है । उपशामनाके पूर्वोक्त भेदों के लिये तालिका देखिये - उपशामना नामउपशामना स्थापनाउपशामना द्रव्यउपशामना भावउपशामना आगमद्रव्यउपशामना नोआगमद्रव्यउपशामना आगमभावउपशामना नोआगमभावउपशामना कर्मद्रव्यउपशामना नोकर्मद्रव्यउपशामना करणोपशामना अकरणोपशामना (अनुदीर्णोपशामना इसका ही नामान्तर है ) देशकरणोपशामना (अगुणोपशामना और अप्रशस्तोपशामना इसी के नामान्तर हैं) सर्वकरणोपशामना (गुणोपशामना और प्रशस्तोपशामना इसी के नामान्तर हैं)
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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