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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
४७८ भुजाकारस्थितिउदीरणा की प्ररूपणा स्वामित्व, एक जीव की अपेक्षा काल, एक जीव की अपेक्षा अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, नाना जीवों की अपेक्षा काल, एक जीव की अपेक्षा अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, नाना जीवों की अपेक्षा काल, नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर और अल्पबहुत्व इन अधिकारों के द्वारा यथासम्भव की गयी है । तत्पश्चात् पदनिक्षेप का संक्षिप्त विवेचन करते हुए वृद्धिउदीरणा की प्ररूपणा के इन अधिकारों के द्वारा जानकर करने का संकेतमात्र किया है - स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, काल और अन्तर । इसके बाद फिर इसी वृद्धिप्ररूपणा के आश्रय से अल्पबहुत्व का विचार विस्तार किया गया है।
___ अनुभागउदीरणा - अनुभागउदीरणा को मूलप्रकृतिउदीरणा और उत्तरप्रकृतिउदीरणा इन दो भेदों से विभक्त करके उनमें मूलप्रकृतिउदीरणा का कथन जानकर करने का उल्लेखमात्र किया गया है । उत्तरप्रकृतिअनुभाग उदीरणा कीप्ररूपणा में इन २४ अनुयोगद्वारों का निर्देश करके यह कहा गया है कि इन अनुयोगद्वारों का कथन करके तत्पश्चात् भुजाकार, पदनिक्षेप, वृद्धि और स्थान का भी कथन करना चाहिये । वे अनुयोगद्वार ये हैं - १ संज्ञा, २ सर्वउदीरणा, ३. नोसर्वउदीरणा, ४, उत्कृष्ट उदीरणा, ५ अनुत्कृष्ट उदीरणा, ६. जघन्य उदीरणा, ७. अजघन्य उदीरणा, ८. सादिउदीरणा, ९. अनादिउदीरणा, १०.ध्रुवउदीरणा, ११. अध्रुवउदीरणा, १२. एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व, १३. एक जीव की अपेक्षा काल, १४. एक जीव की अपेक्षा अन्तर, १५. नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, १६. भागाभागानुगम, १७. परिमाण, १८. क्षेत्र, १९. स्पर्शन, २०. नाना जीवों की अपेक्षा काल, २१. नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर, २२. भाव, २३. अल्पबहुत्व और २४. संनिकर्ष ।
इनमें संज्ञा के घातिसंज्ञा और स्थानसंज्ञा इन दो भेदों का निर्देश करके फिर घातिसंज्ञा की प्ररूपणा करते हुये यह बतलाया है कि आभिनिबोधिकज्ञानावरण,श्रुतज्ञानावरण अवधिज्ञानावरण और मन:पर्ययज्ञानावरण इन चार की उत्कृष्ट उदीरणा सर्वधाती तथा अनुत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती एवं देसघाती भी होती है । केवलज्ञानावरण की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती ही होती है । इसी प्रकार से दर्शनावरण आदि अन्य अन्य प्रकृतिभेदों के सम्बन्ध में भी इस घातिसंज्ञा की प्ररूपणा की गयी है ।
स्वामित्व - यहाँ ये चार अनुयोगद्वार निर्दिष्ट किये गये हैं - प्रत्ययप्ररूपणा, विषाकप्ररूपणा, स्थानप्ररूपणा और शुभाशुभप्ररूपणा । प्रत्ययप्ररूपणा में यह बतलाया है कि पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्ननावरण, तीन दर्शनमोहनीय और सोलह कषाय की उदीरणा