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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४७७ या अनुत्कृष्ट स्थित का; इसका विचार यहां किया गया है। उदाहरणार्थ - मतिज्ञानावरण की उत्कृष्ट स्थिति की उदीरणा करने वाला श्रुतज्ञानावरण की स्थिति का नियम से उदीरक होता है । उदीरक होकर भी वह उसकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट दोनों ही स्थितियों का उदीरक होता है । अनुत्कृष्ट स्थिति का उदीरक होता हुआ उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा एक समय कम, दो समय कम, तीन समय कम, इत्यादि क्रम से पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र से हीन अनुत्कृष्ट स्थिति का उदीरक होता है। इसी प्रकार से अवधिज्ञानावरणादि शेष तीन ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण तथा साता व असातावेदनीय आदि सभी प्रकृतियों की स्थिति उदीरणा का तुलनात्मक विचार यहाँ संनिकर्षप्ररूपणा में किया गया है । इस प्रकार मतिज्ञानावरण की प्रधानता से पूर्वोक्त प्ररूपणा कर चुकाने के बाद यहाँ यह उल्लेख मात्र किया गया है कि शेष ध्रुवबन्धी प्रकृतियों में सक एक-एक को प्रधान कर उनके संनिकर्ष की प्ररूपणा मतिज्ञानावरण के ही समान करना चाहिये। तत्पश्चात् यहाँ कुछ प्रकृतियों के संनिकर्ष के कहने की प्रतिज्ञा करके सम्भवत: सातावेदनीय को प्रधान करके (प्रतियों में यह उल्लेख पाया नहीं जाता, सम्भवत: वह स्खलित हो गया है ) भी पूर्वोक्त प्रकार से संनिकर्ष की प्ररूपणा की गयी है । यह उत्कृष्ट पद विषय संनिकर्ष की प्ररूपणा की गयी है । जघन्य पद विषयक संनिकर्ष की प्ररूपणा के सम्बन्ध में इतना मात्र उल्लेख किया गया है कि उसकी प्ररूपणा विचाकर करना चाहिये। अल्पबहुत्व - यहाँ प्रथमत: सामान्य (ओघ) स्वरूप से सब प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा विषयक अल्पबहुत्व का विवेचन करते हुए तदनुसार आदेश की अपेक्षा गत्यादि मार्गणाओं में भी पूर्वोक्त अल्पबहुत्व के कथन करने का उल्लेख किया गया है । तत्पश्चात् ओघ और फिर आदेश रूप से जघन्य स्थिति उदीरणा विषयक अल्पबहुत्व की भी प्ररूपणा की है। भुजाकार स्थितिउदीरणा - यहाँ पहिले अर्थपद का विवेचन करते हुए यह बतलाया है कि अल्पतर स्थितियों की उदीरणा करके आगे के अनन्तर समय में बहत स्थितियों की उदीरणा करने पर भुजाकार स्थिति उदीरणा होती है। बहुत स्थितियों की उदीरणा करके आगे के अनन्तर समय में अल्प स्थितियों की उदीरणा करने पर यह अल्पतर स्थितिउदीरणा कही जाती है। जितनी स्थितियों की उदीरणा इस समय की गयी है आगे के अनन्तर समय में भी उतनी ही स्थितियों की उदीरणा की जाने पर यह अवस्थित उदीरणा कहलाती है। जिसने पहिले स्थितिउदीरणा नही की है किन्तु अब कर रहा है उसकी यह उदीरणा अवक्तव्य उदीरणा कही जाती है । इस प्रकार से अर्थपद का कथन करके तत्पश्चात् यहाँ
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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