SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 510
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४७६ से कितने काल होती है, इसका विचार यहाँ कालप्ररूपणा में किया गया है । उदाहरण के रूप में जैसे पाँच ज्ञानावरण प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति की उदीरणा जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त मात्र होती है। उनकी अनुत्कृष्ट स्थिति उदीरणा का काल जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनरूप अनन्त काल है । उन्हीं की जघन्यस्थिति उदीरणा का काल जघन्य से भी एक समय मात्र है और उत्कर्ष से भी एक समय मात्र ही है । इनकी अजघन्य स्थिति उदीरणा का काल अभव्य जीवों की अपेक्षा अनादि- अपर्यवसित और भव्य जीवों की अपेक्षा अनादि सपर्यवसित है । एक जीव की अपेक्षा अन्तर- जिस प्रकार काल प्ररूपणा में उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य स्थितिउदीरणाओं के काल का कथन किया गया है उसी प्रकार अन्तर प्ररूपणा में उनके अन्तर का विचार किया गया है । नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय - यहाँ अर्थपद के कथन में यह बतलाया है। कि जो जीव उत्कृष्ट स्थिति के उदीरक होते हैं वे अनुत्कृष्ट स्थिति के अनुदीरक होते हैं और जो अनुत्कृष्ट स्थित के उदीरक होते हैं वे उत्कृष्ट स्थित के अनुदीरक होते हैं । इसी प्रकार से जो जघन्य स्थिति के उदीरक होते हैं वे अजघन्य स्थिति के नियम से अनुदीरक होते हैं तथा जो अजघन्य स्थिति के उदीरक होते हैं वे जघन्य स्थिति के नियम से अनुदीरक होते हैं । इस प्रकार अर्थपद का उल्लेख करके तत्पश्चात् किन प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा आदि में कितने भंग होते हैं, इसका विचार किया गया है। जैसे- पाँच ज्ञानावरण प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति के कदाचित् सब जीव अनुदीरक होते हैं, कदाचित बहुत अनुदीरक और एक उदीरक होता है तथा कदाचित् बहुत अनुदीरक और बहुत ही उदीरक होते हैं । इस प्रकार उनकी उत्कृष्ट स्थिति के उदीरकों में तीन भंग पाये जाते हैं । यथा - अनुत्कृष्ट स्थिति के कदाचित् सब जीव उदीरक, कदाचित् बहुत उदीरक एक अनुदीरक तथा कदाचित् बहुत उदीरक व बहुत अनुदीरक होते हैं । नाना जीवों की अपेक्षा काल और अन्तर की प्ररूपणा न करके यहाँ केवल इतना उल्लेख भर किया गया है कि उनकी प्ररूपणा नाना जीवों की अपेक्षा की गयी पूर्वोक्त भंगविचयप्ररूपणा से ही सिद्ध करके करना चाहिये । संनिकर्ष - मतिज्ञानावरण प्रकृति को प्रधान करके उसके उत्कृष्ट स्थिति की उदीरणा करने वाला जीव अन्य सब प्रकृतियों में किस किस प्रकृतिकी स्थिति का उदीरक या अनुदीरक होता है, तथा यदि उदीरक होता है तो क्या उत्कृष्ट स्थिति का उदीरक होता है
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy