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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
४७४ एक जीव की अपेक्षा काल व अन्तर तथा नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर तथा अल्पबहुत्व का विचार किया गया है । उदाहरण स्वरूप मोहनीय कर्म की स्थान उदीरणा में एक, दो, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ और दस प्रकृति रूप नौ स्थानों की सम्भावना है । उनमें एक प्रकृति रूप उदीरणास्थान के चार भंग हैं - संज्वलन क्रोध के उदय से प्रथम भंग, मानसंज्वलन के उदय से दूसरा भंग, मायासंज्वलन के उदय से तीसरा भंग, और लोभसंज्वलन के उदय से चौथा भंग । इन भंगों का कारण यह है कि इन चारों प्रकृतियों में से विवक्षित समय में किसी एक की ही उदीरणा हो सकती है। दो प्रकृतिरूप स्थान के उदीरक के बारह भंग होते हैं - इसका कारण यह है कि विवक्षित समय में तीन वेदों में से किसी एक ही वेद की उदीरणा हो सकेगी तथा उसके साथ उक्त चार संज्वलन कषायों में से किसी एक संज्वलन कषाय की भी उदीरणा होगी। इस प्रकार दो प्रकृतिरूप स्थान की उदीरणा में बारह (४ x ३ = १२) भंग प्राप्त होते हैं। चार प्रकृतिरूप स्थान की उदीरणा में चौबीस भंग होते हैं । वे इस प्रकार से- तीन वेदों में से कोई एक वेद प्रकृति, चार, संज्वलन कषायों में से कोई एक, तथा इनके साथ हास्य-रति या अरति-शोक इन दो युगलों में से कोई एक युगल रहेगा । इस प्रकार चार प्रकृतिरूप स्थान के चौबीस (३ x ४ x २ = २४ ) भंग प्राप्त होते हैं । इस चार प्रकृतिरूप स्थान में भय, जुगुप्सा, सम्यक्त्व प्रकृति अथवा प्रत्याख्यानावरणादि चार में से किसी एक प्रत्याख्यानावरण कषाय के सम्मिलित होने पर पाँच प्रकृतिरूप स्थान के चार चौबीस (२४ x ४ = ९६) भंग होते हैं। इसी प्रकार से आगे भी छह प्रकृतिरूप स्थान के सात चौबीस (२४ x ७ = १६८), सात प्रकृतिरूप स्थान के दस चौबीस (२४ x १० : २४०), आठ प्रकृतिरूप स्थान के ग्यारह चौबी (२४४११= २६४), नौ प्रकृतिरूप स्थान के छह चौबीस (२४ x ६ x १४४), तथा दस प्रकृति रूप स्थान के एक चौबीस (२४ x १ - २४) भंग होते हैं। इस प्रकार मोहनीय कर्म की स्थान उदीरणा में प्रथमत: स्थान समुत्कीर्तना करके तत्पश्चात् स्वामित्व, एक जीव की अपेक्षा काल, एक जीव की अपेक्षा अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, नाना जीवों की अपेक्षा काल, नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर, संनिकर्ष और अल्पबहुत्व इन अधिकारों के द्वारा उसकी प्ररूपणा की गयी है।
____ इसी प्रकार से ज्ञानावरणादि अन्य कर्मों के भी विषय में पूर्वोक्त स्वामित्व आदि अधिकारों के द्वारा यथासम्भव स्थान उदीरणा की प्ररूपणा की गयी है । वेदनीय और आयु कर्मों के स्थान उदीरणा की सम्भावना नहीं है ।
भुजाकार उदीरणा - यहाँ प्रथमत: दर्शनावरण के सम्ब्न्ध में भुजाकार, अल्पतर,