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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
काल,
भंगविचय की अतिसंक्षेप में प्ररूपणा करते हुए भागाभग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, अन्तर और भाव; इन सबकी जानकर प्ररूपणा करने का निर्देशमात्र किया गया है।
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पदनिक्षेपप्ररूपणा में भुजाकार उदीरणा की उत्कृष्ट वृद्धि आदि किसके 'होती है, इसका कुछ विवेचन करते हुए प्रकृत हानि-वृद्धि आदि के अल्पबहुत्व का निर्देश मात्र किया गया है ।
वृद्धिउदीरणाप्ररूपणा में संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणाहानि और अवस्थित उदीरणा इन चार पदों के अस्तित्व का उल्लेख मात्र करके शेष प्ररूपणा जानकर करना चाहिये (सेसंजाणिऊ ण वत्तव्वं ) इतना मात्र निर्देश करते हुए मूल प्रकृतिउदीरणा की प्ररूपणा समाप्त की गयी है ।
मूलप्रकृतिउदीरणा के समान उत्तर प्रकृतिउदीरणा भी दो प्रकार की है - एक-एक प्रकृतिउदीरणा और प्रकृतिस्थानउदीरणा । इनमें प्रथमत: एक-एक प्रकृतिउदीरणा की प्ररूपणा स्वामित्व, एक जीव की अपेक्षा काल, एक जीव की अपेक्षा अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, नाना जीवों की अपेक्षा काल तथा नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर इन अधिकारों
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द्वारा की गयी है । आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियों में से किस-किस प्रकृति के कौन-कौन से जीव उदीरक होते हैं, इसका विवेचन स्वामित्व में किया गया है। एक जीव की अपेक्षा काल के कथन में यह बतलाया है कि अमुक-अमुक प्रकृति की उदीरणा एक जीव के आश्रय से निरन्तर जघन्यतः इतने काल और उत्कर्षतः इतने काल तक होती है। एक जीव की अपेक्षा विवक्षित प्रकृति की उदीरणा का निरूपण में किया गया है । मतिज्ञानावरणादि प्रकृतियों की उदीरणा में नाना जीवों की अपेक्षा कितने भंग पांच ज्ञानावरण प्रकृतियों के उदीरक कदाचित् सब जीव हो सकते हैं, कदाचित् बहुत उदीरक और एक यहाँ तीन भंग संभव है । नाना जीव यदि विवक्षित प्रकृति की उदीरणा करें तो कम से कम कितने काल और अधिक से अधिक कितने काल करेंगें, इसका विचार 'नाना जीवों की अपेक्षा काल' में किया गया है । इसी प्रकार नाना जीव विविक्षत कप्रकृति को छोडकर अन्य प्रकृति की उदीरणा करते हुए यदि फि से उक्त प्रकृतियों की उदीरणा प्रारम्भ करते हैं तो कम से कम कितने काल में और अधिक से अधिक कितने काल में करते हैं, इसका विवेचन नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर में किया गया है ।
संनिकर्ष - एक-एक प्रकृति उदीरणा की ही प्ररूपणा को चालू रखते हुए संनिकर्ष IT भी यहाँ कथन किया गया है । यह संनिकर्ष स्वस्थान और परस्थान के भेद से दो प्रकार