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________________ षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४७१ प्रविष्ट हो जाने पर वह आठ से सात प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ अल्पतर उदीरक हो गया । इस प्रकार अल्पतर उदीरणा का जघन्य काल एक समय प्राप्त हुआ । तत्पश्चात् द्वितीय समय में अप्रमत्त गुणास्थान को प्राप्त होने पर वह वेदनीय कर्म के बिना छह प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ अल्पतर उदीरक ही रहा । इस प्रकार अल्पतर उदीरणा का काल भी उत्कर्ष से दो समय मात्र ही पाया जाता है । अवस्थित उदीरणा का कालजघन्य से एक समय और उत्कर्ष से एक समय अधिक एक आवली से हीन ते तीस सागरोपमप्रमाणा है । देवों में उत्पन्न होने के प्रथम समय में पाँच, छह या सात से आठ का उदीरक होकर भुजाकार उदीरक हुआ । पुन: द्वितीय समय से लेकर मरणावली प्राप्त होने तक अवस्थित रूप से आठ का ही उदीरक रहा। इस प्रकार अवस्थित उदीरणा का उत्कृष्ट काल प्रथमसमय और अन्तिम आवली को छोडकर पूर्ण देव पर्यायप्रमाण तेतीस सागरोपम मात्र प्राप्त हो जाता है। ___ अन्तरप्ररूपणा में भुजाकार उदीरणा के अन्तर पर विचार करते हुए उसका जघन्य अन्तर एक या दो समय मात्र बतलाया है । यथा - पांच प्रकृतियों का उदीरक कोई उपशान्तकषाय नीचे गिरता हुआ सूक्ष्मसाम्परायिक होकर छह का उदीरक हुआ । तत्पश्चात् द्वितीय समय में भी वह छह का ही उदीरक रहा । इस प्रकार भुजाकार उदीरणा का अवस्थित उदीरणास अन्तर हुआ । पुन: तृतीय समय में मरकर वह देवों में उत्पन्न हो आठ का उदीरक होकर भुजाकार उदीरणा करने लगा । इस प्रकार भुजाकार उदीरणा का एक समय मात्र जघन्य अन्तर प्राप्त हो जाता है । उसका उत्कृष्ट अन्तर एक समय कम तेतीस सागरोपम प्रमाण है। वह इस प्रकार से - कोई जीव तेतीस सागरोपम आयुवाले देवों में उत्पन्न होकर उत्पन्न होने के प्रथम समय में भुजाकार उदीरक हुआ और द्वितीय समय से लेकर मरणावली प्राप्त होने के पूर्व समय तक वह अवस्थित उदीरक रहा । इस प्रकार उसका इतना अन्तर अवस्थित उदीरणा से हुआ । तत्पश्चात् मरणावली के प्रथम समय में वह आयु के बिना सात प्रकृतियों की उदीरणा करता हुआ अल्पतर उदीरक हो मरणावली काल के अन्तिम समय तक अवस्थित उदीरक रहा । तत्पश्चात् मरण को प्राप्त होकर मनुष्यों में उत्पन्न हुआ और उत्पन्न होने के प्रथम समय में पुन: भुजाकार उदीरक हुआ । इस प्रकार भुजाकार उदीरणा का अवस्थित और अल्पतर उदीरणाओं से एक समय कम पूरे तेतीस सागरोपम काल तक अन्तर रहा। आगे चलकर इसी भुजाकार उदीरणा की प्ररूपणा में नाना जीवों की अपेक्षा
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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