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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
बाह्य वर्गणा विचार इस प्रकार यहाँ तक आभ्यन्तर वर्गणा का विचार करके आगे बाह्मवर्गणा का विचार चार अनुयोगद्वारों का आश्रय लेकर किया गया है । वे चार अनुयोगद्वार ये हैं - शरीरिशरीरप्ररूपणा, शरीरप्ररूपणा, शरीरविस्रसोपचयप्ररूपणा और विस्रसोपचयप्ररूपणा। शरीरी जीव को कहते हैं। इनके प्रत्येक और साधरण के भेद से दो प्रकार के शरीर होते हैं। इन दोनों का जिसमें प्रतिपादन किया जाता है उसे शरीरिशरीरप्ररूपणा कहते हैं। औदारिक आदि पाँच प्रकार के शरीरों का अपनी अवान्तर विशेषताओं के साथ जिसमें प्ररूपण किया जाता है उसे शरीरप्ररूपणा कहते हैं। जिसमें पाँचों शरीरों के विस्रोसोपचय के सम्बन्ध के कारण भूत स्निग्ध और रूक्षगुण के अविभागप्रतिच्छेदों का कथन किया जाता है उसे शरीरविस्रसोपचयप्ररूपणा कहते हैं। तथा जिसमें जीव से मुक्त हुए उन्हीं परमाणुओं के विस्रसोपचय की प्ररूपणा की जाती है उसे विस्रासोपचयप्ररूपणा कहते हैं।
शरीरिशरीरप्ररूपणा - इसमें जीवों के प्रत्येक शरीर और साधारण शरीर ये दो भेद बतलाकर साधारण शरीर वनस्पतिकायिक ही होते हैं और शेष जीव प्रत्येक शरीर होते हैं यह बतलाया गया है । इसके आगे साधारण का लक्षण करते हुए बतलाया है कि जिनका साधारण आहार है और श्वासोच्छ्वास का ग्रहण साधारण है वे साधारण जीव हैं । इनका शरीर एक होता है। उसे व्याप्त कर अनन्तानन्त निगोद जीव रहते हैं, इसलिए इन्हें साधारण कहते हैं और इसीलिए आहार और श्वासोच्छ्वासका ग्रहण भी साधारण होता है । तात्पर्य यह है कि सर्वप्रथम उत्पन्न हुए जीव जितने काल में शरीर आदि चार पर्याप्तियों से पर्याप्त होते हैं उतने ही काल में अनन्तर उसी शरीर में उत्पन्न हुए जीव भी शरीर आदि चार पर्याप्तियों के पूर्ण करने में कोई अन्तर नहीं पड़ता। यहां तक पर्याप्तियों के पूर्ण होने के समय में यदि जीव इस शरीर में उत्पन्न होते हैं तो वे उत्पन्न होने के प्रथम समय में ही पूर्व में उत्पन्न हुए जीवों द्वारा ग्रहण किये गये आहर से उत्पन्न हुई शक्ति को प्राप्त कर लेते हैं। उन्हें उसके लिए अलग से प्रयत्नशील नहीं होना पड़ता । विशेष स्पष्ट कहें तो यह कहा जा सकता है कि पर्याप्तियों की निष्पत्ति के लिए एक जीवद्वारा जो अनुग्रहण अर्थात् परमाणुपुद्गलों का ग्रहण है वह उस समय वहाँ रहने वाले या पीछे उत्पन्न होने वाले अन्य अनन्तानन्त जीवों का अनुग्रहण होता है, क्योंकि एक तो उस आहर से जो शक्ति उत्पन्न होती है वह युगपत् सब जीवों को मिल जाती है। दूसरे उन परमाणुओं से जो शरीर के अवयव बनते हैं वे सबके होते हैं। इसी प्रकार बहुत जीवों के द्वारा जो अनुग्रहण है वह एक जीव के लिए भी होता है । एक शरीर में जो प्रथम समय में जीव उत्पन्न होते हैं और जो द्वितीयादि समयों में