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________________ पट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका ४२८ __ अनन्तर क्षेत्रस्पर्श – विवक्षित क्षेत्र से लगा हुआ क्षेत्र अनन्तर क्षेत्र कहलाता है । कोई द्रव्य विवक्षित क्षेत्र में स्थित है और अन्य द्रव्य उससे लगे हुए क्षेत्र में स्थित हैं। ऐसी अवस्था में इन दो द्रव्यों का जो स्पर्श होता है वह अनन्तरक्षेत्रस्पर्श कहलाता है। इसी प्रकार जो द्विप्रदेशी आदि स्कन्ध होते हैं उनका दो आकाशप्रदेशों आदि में निवास करने पर उन स्कन्धों में रहनेवाले परमाणुओं का भी अनन्तरक्षेत्रस्पर्श घटित कर लेना चाहिए । तात्पर्य यह है कि जहां क्षेत्र का व्यवधान न होकर दो द्रव्यों का स्पर्श होता है वहां यह स्पर्श घटित होता है। देशस्पर्श - एक द्रव्य के एक देश का अन्य द्रव्य के एकदेश के साथ जो स्पर्श होता है उसे देशस्पर्श कहते हैं । यह देशस्पर्श स्कन्धोके अवयवों का ही होता है, परमाणुरूप पुद्गलों का नहीं; क्योंकि, परमाणुओं के अवयव नहीं उपलब्ध होते; यदि ऐसा कोई कहे तो उसका यह कथन उपयुक्त नहीं है, क्योंकि परमाणु का विभाग नहीं हो सकता इस अपेक्षा उसे अप्रदेशी कहा है । वैसे तो परमाणु भी सावयव होता है, अन्यथा परमाणुओं के संयोग से स्कन्ध की उत्पत्ति नहीं हो सकती । इसलिए दो या दो से अधिक परमाणुओं का भी एकदेशस्पर्श होता है। त्वक्स्पर्श - वृक्ष की छाल को त्वक् और पपड़ी को नोत्वक् कहते हैं । तथा सूरण, अदरख, प्याज और हलदी आदि की बाह्म पपड़ी को भी नोत्वक् कहते हैं । द्रव्य का त्वचा और नोत्वचा के साथ जो स्पर्श होता है उसे त्वक्स्पर्श कहते हैं। त्वचा और नोत्वचा के ये स्कन्ध के ही अवयव हैं, इसलिए पृथक द्रव्य न होने से इसका द्रव्य स्पर्श में अन्तर्भाव नहीं किया है । यहां त्वचा और नोत्वचा के एक ओर नाना भेद करके आठ भङ्ग उत्पन्न करने चाहिए। ये भेद वीरसेन स्वामी ने लिखे हैं, इसलिए उनका अलग से विवेचन नहीं किया है । यहां त्वचा और नोत्वचा का द्रव्यके साथ अथवा परस्पर स्पर्श विवक्षित है, इतना विशेष जानना चाहिए। सर्वस्पर्श – एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य के साथ जो सर्वांग स्पर्श होता है उसे सर्वस्पर्श कहते हैं। उदाहरणार्थ एक आकाशप्रदेश में बन्ध को प्राप्त हुए दो परमाणुओं का सर्वांग स्पर्श देखा जाता है । इसी प्रकार अन्य द्रव्यों का यथासम्भव सर्वस्पर्श जानना चाहिए। स्पर्शस्पर्श - स्पर्श गुण के आठ भेद हैं । उनका स्पर्शन इन्द्रिय के साथ जो स्पर्श होता है उसे स्पर्शस्पर्श कहते हैं । यहां पर कर्कश आदि गुणों के परस्पर स्पर्श की
SR No.002281
Book TitleShatkhandagam ki Shastriya Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year2000
Total Pages640
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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